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________________ भारतीय आचारदर्शन में ज्ञान की विधाएँ १. ज्ञान की दो विधाएँ २. जैन दर्शन के अनुसार ज्ञान की विधाएँ ३. बौद्ध दर्शन में ज्ञान की विधाएँ ४. वैदिक परम्परा में ज्ञान की विधाएँ ५. पाश्चात्य परम्परा में ज्ञान की विधाएँ ६. जैन, बौद्ध और वैदिक परम्पराओं में दृष्टिकोणों का विचार-भेद ७. जैन दर्शन में ज्ञान की सत्यता का आधार ८. आचारदर्शन की अध्ययन विधियाँ ९. आचारदर्शन के अध्ययन के विविध दृष्टिकोण १०. क्या निश्चयनय या परमार्थदृष्टि नैतिक अध्ययन की विधि है ? ११. तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में निश्चयनय और व्यवहारनय का अर्थ १२. तत्त्वज्ञान और आचारदर्शन के क्षेत्र में व्यवहारनय और निश्चयनय का अन्तर १३. द्रव्यार्थिक या पर्यायार्थिक नयों की दृष्टि से नैतिकता का विचार १४. आचारदर्शन के क्षेत्र में निश्चयदृष्टि और व्यवहारदृष्टि का अर्थ निश्चयनय का अर्थ ४२ / आचार के क्षेत्र में व्यवहारदृष्टि ४५ / १५. नैतिकता के क्षेत्र में व्यवहारदृष्टि के आधार आगम - व्यवहार ४६ | श्रुत-व्यवहार ४७ / आज्ञा - व्यवहार ४७ / धारणा व्यवहार ४७ / जीत-व्यवहार ४७ / १६. व्यवहार के पाँच आधारों की वैदिक परम्परा से तुलना १७. आक्षेप एवं समाधान १८. निश्चयदृष्टिसम्मत आचार की एकरूपता १९. निश्चय और व्यवहारदृष्टि का मूल्यांकन २०. पाश्चात्य आचारदर्शन की अध्ययनविधियाँ और जैन दर्शन जैविक विधि ५२ / ऐतिहासिक विधि ५२ / मनोवैज्ञानिक विधि ५२ / दार्शनिक विधि ५२ / २१. भारतीय आचारदर्शनों में विविध विधियों का समन्वय Jain Education International p २७ g For Private & Personal Use Only २९ ३० ३१ ३२ ३२ ३३ ३४ ३४ ३५ ३८ ३९ ४० ४१ ४२ ४६ ४७ ४८ ४९ ४९ ५१ ५३ www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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