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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
अप्रशस्त या अधर्म लेश्याओं में प्राणियों
की मनःस्थिति एवं चरित्र (उत्तराध्ययन के आधार पर)'
___ जैन-दृष्टिकोण
१. अज्ञानी
३. मन, वचन एवं कर्म से अगुप्त
४. दुराचारी ५. कपटी ६. मिथ्यादृष्टि
आसुरी सम्पदा से युक्त प्राणियों की
मनःस्थिति एवं चरित्र (गीता के आधार पर)२
गीता का दृष्टिकोण कर्तव्याकर्त्तव्य के ज्ञान का अभाव नष्टात्मा एवं चिन्ताग्रस्त मानसिक एवं कायिक शौच से रहित (अपवित्र) अशुद्ध आचार (दुराचारी) कपटी, मिथ्याभाषी आत्मा और जगत् के विषय में मिथ्यादृष्टिकोण अल्प-बुद्धि क्रूरकर्मी हिंसक, जगत् का नाश करने वाला कामभोग-परायण तथा क्रोधी तृष्णायुक्त चोर
७. अविचारपूर्वक कर्म करनेवाला ८. नुशंस ९. हिंसक १०. रसलोलुप एवं विषयी . ११. अविरत १२. चोर
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लेश्या-सिद्धान्त एवं पाश्चात्य नीतिवेत्ता रास का नैतिक व्यक्तित्व का वर्गोकरण--पाश्चात्य नीतिशास्त्र में डब्ल्य० रास भी एक ऐसा वर्गीकरण प्रस्तुत करते हैं जिसकी तुलना जैन लेश्या-सिद्धान्त से की जा सकती है। रास कहते हैं कि नैतिक शुभ एक ऐसा शुभ है जो हमारे कार्यों, इच्छाओं, संवेगों तथा चरित्र से सम्बन्धित है । नैतिक शुभता का मूल्य केवल इसी बात में नहीं है कि उसका प्रेरक क्या है, वरन् उसकी अनैतिकता के प्रति अवरोधक शक्ति से भी है। नैतिक शुभत्व के सन्दर्भ में मनोभावों का उनके निम्नतम रूप से उच्चतम रूप तक निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है।
१. दूसरों को जितना अधिक दुःख दिया जा सकता है, देने की इच्छा। २. दूसरों को किसी विशेष प्रकार का अस्थायी दुःख उत्पन्न करने की इच्छा । ३. नैतिक दृष्टि से अनुचित सुख प्राप्त करने की इच्छा ।
१. उत्तराध्ययन, ३४।२१-३६
२. गीता, १६१७-१८
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