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मन का स्ववरूप तथा नैतिक जीवन में उसका स्थान
१. मन का स्वरूप
२. द्रव्यमन और भावमन
३. मन शरीर के किस भाग में स्थित है ?
४. जैनदर्शन में द्रव्यमन और भावमन की कल्पना
५. द्रव्यमन और भावमन का सम्बन्ध
६. नैतिक चेतना में मन का स्थान
जैन दृष्टिकोण ४८२ | बौद्ध दृष्टिकोण ४८३ | गीता एवं वेदान्त का दृष्टिकोण ४८३ |
७. मन ही बन्धन और मुक्ति का कारण क्यों ?
८. मन अविद्या का वासस्थान
९. नैतिक प्रगति और नैतिक उत्तरदायित्व एवं मन १०. मनोनिग्रह
जैनदर्शन में मनोनिग्रह ४८८ | बौद्धदर्शन में मनोनिग्रह ४८८ | गीता में मनोनिग्रह ४८८ |
११. आधुनिक मनोविज्ञान में मनोनिग्रह : एक अनुचित धारणा १२. समालोच्य आचार- दर्शनों में दमन की अनौचित्यता
जैन दर्शन में मनोनिग्रह का अनौचित्य ४८९ / बौद्ध दर्शन में दमन का अनौचित्य ४९० | गीता में दमन का अनौचित्य ४९० / १३. जैन दर्शन का साधना मार्ग - वासनाओं का दमन नहीं, वासना का क्षय; १४. वासनाक्षय एवं मनोजय का सम्यक् मार्ग
१५. जैन दर्शन में मन की चार अवस्थाएँ
१. विक्षिप्त मन / २. यातायात मन / ३. श्लिष्ट मन / ४. सुलीन मन ४९४ /
१६. बौद्ध दर्शन में चित्त की चार अवस्थाएं
१. कामावर चित्त / २. रूपावचर चित्त ४९४ / ३. अरूपावचर चित्त / लोकोत्तर चित्त ४९५ /
१७. योगदर्शन में चित्त को पाँच अवस्थाएं
१. क्षिप्त चित्त / २. मूढ़ चित्त / ३. विक्षिप्त चित्त / ४. एकाग्र चित्त / निरुद्ध चित्त ४९५ /
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