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________________ १७ मन का स्ववरूप तथा नैतिक जीवन में उसका स्थान १. मन का स्वरूप २. द्रव्यमन और भावमन ३. मन शरीर के किस भाग में स्थित है ? ४. जैनदर्शन में द्रव्यमन और भावमन की कल्पना ५. द्रव्यमन और भावमन का सम्बन्ध ६. नैतिक चेतना में मन का स्थान जैन दृष्टिकोण ४८२ | बौद्ध दृष्टिकोण ४८३ | गीता एवं वेदान्त का दृष्टिकोण ४८३ | ७. मन ही बन्धन और मुक्ति का कारण क्यों ? ८. मन अविद्या का वासस्थान ९. नैतिक प्रगति और नैतिक उत्तरदायित्व एवं मन १०. मनोनिग्रह जैनदर्शन में मनोनिग्रह ४८८ | बौद्धदर्शन में मनोनिग्रह ४८८ | गीता में मनोनिग्रह ४८८ | ११. आधुनिक मनोविज्ञान में मनोनिग्रह : एक अनुचित धारणा १२. समालोच्य आचार- दर्शनों में दमन की अनौचित्यता जैन दर्शन में मनोनिग्रह का अनौचित्य ४८९ / बौद्ध दर्शन में दमन का अनौचित्य ४९० | गीता में दमन का अनौचित्य ४९० / १३. जैन दर्शन का साधना मार्ग - वासनाओं का दमन नहीं, वासना का क्षय; १४. वासनाक्षय एवं मनोजय का सम्यक् मार्ग १५. जैन दर्शन में मन की चार अवस्थाएँ १. विक्षिप्त मन / २. यातायात मन / ३. श्लिष्ट मन / ४. सुलीन मन ४९४ / १६. बौद्ध दर्शन में चित्त की चार अवस्थाएं १. कामावर चित्त / २. रूपावचर चित्त ४९४ / ३. अरूपावचर चित्त / लोकोत्तर चित्त ४९५ / १७. योगदर्शन में चित्त को पाँच अवस्थाएं १. क्षिप्त चित्त / २. मूढ़ चित्त / ३. विक्षिप्त चित्त / ४. एकाग्र चित्त / निरुद्ध चित्त ४९५ / Jain Education International - ४७७ - For Private & Personal Use Only ४७९ ४७९ ४७९ ४८० ४८० ४८२ ४८४ ४८५ ४८६ ४८७ ४८९ ४८९ ४९१ ४९२ ४९४ ४९४ ४९५ www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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