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जैन, बौख तथा गीता के माचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
अंश है और साधना-मार्ग परमात्मा की विभूति है और साध्य वही परमात्मा है तो फिर इनमें अभेद ही माना जायेगा। यहां यह स्मरण रखना चाहिए कि यह अभेद तात्त्विक है, व्यावहारिक नहीं। व्यावहारिक जीवन में साध्य, साधक और साधना-पथ तीनों अलग-अलग हैं : क्योंकि यदि उनमें यह भेद स्वीकार नहीं किया जायेगा, तो नैतिक जीवन का कोई अर्थ ही नहीं रह जायेगा। आचार-दर्शन का कार्य यही है कि वह इस बात का निर्देश करे कि साधक आत्मा को साधना-मार्ग के माध्यम से सिद्धि की प्राप्ति कैसे हो सकती है ।
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