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________________ ३. वेदनीय कर्म ३६८/ सातावेदनीय कर्म के कारण ३६९ / सातावेदनीय कर्म का विपाक ३६९ / असातावेदनीय कर्म के कारण ३६९ / ४. मोहनीय कर्म ३७० / मोहनीय कर्म के बन्ध के कारण ३७० / (अ) दर्शन मोह ३७१ / (ब) चारित्र मोह ३७१ / ५. आयुष्य कर्म ३७२ / आयुष्य-कर्म के बन्ध के कारण ३७२ / (अ) नारकीय जीवन की प्राप्ति के चार कारण ३७२/ (ब) पाशविक जीवन की प्राप्ति के चार कारण ३७२/ (स) मानव जीवन की प्राप्ति के चार कारण ३७३ / (द) देवीय जीवन की प्राप्ति के चार कारण ३७३ / आकस्मिकमरण ३७३ / ६. नाम कर्म ३७३ / शुभनाम कर्म के बन्ध के कारण ३७४ | शुभनाम कर्म का विपाक ३७४ / अशुभनाम कर्म के कारण ३७४ / अशुभनाम कर्म का विपाक ३७४ / ७. गोत्र कर्म ३७५ / उच्च गोत्र एवं नीच गोत्र के कर्मबन्ध के कारण ३७५ / गोत्र कर्म का विपाक ३७५ / ८. अन्तराय कर्म ३७५ / १. दानान्तराय ३७६ / २. लाभान्तराय ३७६ । ३. भोगान्तराय ३७६ / ४. उपभोगा न्तराय ३७६ / ५. वीर्यान्तराय ३७६ / ५. घाती और अघाती कर्म सर्वघाती और देशघाती कर्म प्रकृतियाँ ३७७ / ६. प्रतीत्यसमुदत्पाद और अष्टकर्म, एक तुलनात्मक विवेचन १. अविद्या ३७८ / २. संस्कार ३७९ / ३. विज्ञान ३७९ / ४. नाम-रूप ३७९ / ५. षडायतन ३७९ / ६. स्पर्श ३८०/ ७. वेदना ३८० ८. तृष्णा ३८० / ९. उपादान ३८० / १०. भव ३८१ / ११. जाति ३८१ / १२. जरा-मरण ३८१ / ७. महायान दृष्टिकोण और अष्टकर्म ८. कम्मभव और उप्पत्तिभव तथा घाती और अघाती कर्म ९. चेतना के विभिन्न पक्ष और बन्धन आधुनिक मनोविज्ञान में चेतना ३८३ / जैन दृष्टिकोण ३८४ / बौद्ध दृष्टिकोण से तुलना ३८५ / ३७८ ३८१ ३८२ ३८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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