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૧૨ कर्म-बन्ध के कारण, स्वरूप एवं प्रक्रिया
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१. बन्धन और दुःख
१. प्रकृति बन्ध ३५६ / २. प्रदेश बन्ध ३५६ / ३. स्थिति
बन्ध ३५६ / ४. अनुभाग बन्ध ३५६ / २. बन्धन का कारण-आस्रव
जैन दृष्टिकोण ३५६ / १. मिथ्यात्व ३६० / २. अविरति ३६० / ३. प्रमाद ३६१ / (क) विकथा ३६१ / (ख) कथाय ३६१ / (ग) राग ३६१ / (घ) विषय-सेवन ३६१ / (ङ) निद्रा ३६१ / ४. कषाय ३६१ / ५. योग ३६१ / बौद्ध दर्शन में बन्धन (दुःख) का कारण ३६२ / गीता की दृष्टि में बन्धन का कारण ३६३ / सांख्य योग दर्शन में बन्धन का कारण ३६५ /
न्याय दर्शन में बन्धन का कारण ३६५ / ३. बन्धन के कारणों का बन्ध के चार प्रकारों से सम्बन्ध ४. अष्टकर्म और उनके कारण
१. ज्ञानावरणीय कर्म ३६७ / ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धन के कारण ३६७ / १. प्रदोष ३६७ / २. निह्नव ३६७ / ३. अन्तराय ३६७ / ४. मात्सर्य ३६७ / ५. असादना ३६७ / ६. उपधात ३६७ / ज्ञानावरणीय कर्म का विपाक ३६७ / १. मतिज्ञानावरण ३६७ / २. श्रुतिज्ञानावरण ३६७ / ३. अवधिज्ञानावरण ३६७ / ४. मनःपर्याय ज्ञानावरण ३६७ / ५. केवल ज्ञानावरण ३६७ /
२.दर्शनावरणीय कर्म ३६८ / दर्शनावरणीय कर्म के बन्ध के कारण ३६८ | दर्शनावरणीय कर्म का विपाक ३६८ / १. चक्षुदर्शनावरण ३६८/२. अचक्षुदर्शनावरण ३६८ | ३. अवधिदर्शनावरण ३६८ / ४. केवलदर्शनावरण ३६८ / ५. निद्रा ३६८/ ६. निद्रानिद्रा ३६८/ ७. प्रचला ३६८/८. स्त्यानगृद्धि ३६८/
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