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________________ ११ कर्म का अशुभत्व, शुभत्व एवं शुद्धत्व ३३२ ३३३ ३३५ ३३८ १. तीन प्रकार के कर्म २. अशुभ या पाप कर्म पाप या अकुशल कर्मों का वर्गीकरण ३३२ / जैन दृष्टिकोण ३३२ / बौद्ध दृष्टिकोण ३३२ / कायिक पाप ३३२ / वाचिक पाप ३३२ / मानसिक पाप ३३२ / गीता का दृष्टिकोण ३३३ / पाप के कारण ३३३ / ३. पुण्य (कुशल कर्म) पुण्य या कुशल कर्मों का वर्गीकरण ३३४/ ४. पुण्य और पाप (शुभ और अशुभ) की कसौटी ५. सामाजिक जीवन में आचरण के शुभत्व का आधार जैन दर्शन का दृष्टिकोण ३३८ / बौद्ध दर्शन का दृष्टिकोण ३३९ / हिन्दू धर्म का दृष्टिकोण ३३९ / पाश्चात्य दृष्टिकोण ३४० ६. शुभ और अशुभ से शुद्ध की ओर जैन दृष्टिकोण ३४० / बौद्ध दृष्टिकोण ३४२ / गीता का दृष्टिकोण ३४२ / पाश्चात्य दृष्टिकोण ३४३ / ७. शुद्ध कर्म (अकर्म) ८. जैन दर्शन में कर्म-अकर्म विचार ९. बौद्ध दर्शन में कर्म-अकर्म का विचार १. वे कर्म जो कृत (सम्पादित) नहीं हैं लेकिन उपचित (फल प्रदाता) हैं ३४६ / २. वे कर्म जो कृत भी हैं और उपचित हैं ३४६ / ३. वे कर्म जो कृत हैं लेकिन उपचित नहीं हैं ३४६ / ४. वे कर्म जो कृत भी नहीं हैं और उपचित भी नहीं हैं ३४७ / १०. गीता में कर्म-अकर्म का स्वरूप १. कर्म ३४७ / २. विकर्म ३४७ / ३. अकर्म ३४७ / ११. अकर्म की अर्थ-विवक्षा पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार ३४३ ३४४ ३४७ ३४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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