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कर्म का अशुभत्व, शुभत्व एवं शुद्धत्व
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१. तीन प्रकार के कर्म २. अशुभ या पाप कर्म
पाप या अकुशल कर्मों का वर्गीकरण ३३२ / जैन दृष्टिकोण ३३२ / बौद्ध दृष्टिकोण ३३२ / कायिक पाप ३३२ / वाचिक पाप ३३२ / मानसिक पाप ३३२ / गीता का दृष्टिकोण ३३३ /
पाप के कारण ३३३ / ३. पुण्य (कुशल कर्म)
पुण्य या कुशल कर्मों का वर्गीकरण ३३४/ ४. पुण्य और पाप (शुभ और अशुभ) की कसौटी ५. सामाजिक जीवन में आचरण के शुभत्व का आधार
जैन दर्शन का दृष्टिकोण ३३८ / बौद्ध दर्शन का दृष्टिकोण ३३९ / हिन्दू धर्म का दृष्टिकोण ३३९ / पाश्चात्य दृष्टिकोण
३४० ६. शुभ और अशुभ से शुद्ध की ओर
जैन दृष्टिकोण ३४० / बौद्ध दृष्टिकोण ३४२ / गीता का
दृष्टिकोण ३४२ / पाश्चात्य दृष्टिकोण ३४३ / ७. शुद्ध कर्म (अकर्म) ८. जैन दर्शन में कर्म-अकर्म विचार ९. बौद्ध दर्शन में कर्म-अकर्म का विचार
१. वे कर्म जो कृत (सम्पादित) नहीं हैं लेकिन उपचित (फल प्रदाता) हैं ३४६ / २. वे कर्म जो कृत भी हैं और उपचित हैं ३४६ / ३. वे कर्म जो कृत हैं लेकिन उपचित नहीं हैं ३४६ /
४. वे कर्म जो कृत भी नहीं हैं और उपचित भी नहीं हैं ३४७ / १०. गीता में कर्म-अकर्म का स्वरूप
१. कर्म ३४७ / २. विकर्म ३४७ / ३. अकर्म ३४७ / ११. अकर्म की अर्थ-विवक्षा पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार
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