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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन ६. मेकेंजी के विचार में कर्म-सिद्धान्त यान्त्रिक रूप में कार्य करता है और कर्म के मनोवैज्ञानिक पक्ष या प्रयोजन को विचार में नहीं लेता है।
मेकेंजी का यह दृष्टिकोण भी भ्रान्तिपूर्ण ही है । कर्म-सिद्धान्त कर्म के मनोवैज्ञानिक पक्ष या कर्ता के प्रयोजन को महत्त्वपूर्ण स्थान देता है । कर्म के मानसिक पक्ष के अभाव में तो बौद्ध और वैदिक विचारणाओं में कोई बन्धन ही नहीं माना गया है । यद्यपि जैन विचारणा ईर्यापथिक बन्ध के रूप में कर्म के बाह्य पक्ष को स्वीकार करती है, लेकिन उसके अनुसार भी बन्धन का प्रमुख कारण तो यही मनोवैज्ञानिक पक्ष है। जैन साहित्य में तन्दुल मत्स्य की कथा स्पष्ट रूप से यह बताती है कि कर्म की बाह्य 'क्रियान्विति के अभाव में भी मात्र वैचारिक या मनोवैज्ञानिक पक्ष ही बन्धन का सुजन कर देता है, अतः कर्म-सिद्धान्त में मनोवैज्ञानिक पक्ष या कर्म के मानसिक पहलू की उपेक्षा नहीं हुई है।
इस प्रकार कर्म-सिद्धान्त पर किये जानेवाले आक्षेप नैतिकता की दृष्टि से निर्बल ही सिद्ध होते हैं । कर्म-सिद्धान्त में अनन्य आस्था रखकर ही नैतिक जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है।
१. जैन ऐथिक्स, १० २७.
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