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________________ १०. कर्म की मूर्तता मूर्त का अमूर्त प्रभाव ३१३ / मूर्त का अमूर्त से सम्बन्ध ३१४ / ११. कर्म और विपाक की परम्परा जैन दृष्टिकोण ३१४ | बौद्ध दृष्टिकोण ३१४ / १२. कर्मफल संविभाग जैन दृष्टिकोण ३१६ / बौद्ध दृष्टिकोण ३१६ | गीता एवं हिन्दू परम्परा का दृष्टिकोण ३१७ / तुलना एवं ३१७ / समीक्षा १३. जैन दर्शन में कर्म की अवस्था ३१९ / ३२० | १. बन्ध ३१८ / २. संक्रमण ३१९ / ३. उद्वर्तना ४. अपवर्तना ३१९ / ५. सत्ता ३२० / ६. उदय ७ उदीरणा ३२० / ८. उपशमन ३२० / ९ निधत्ति ३२० / १०. निकाचना ३२० / कर्म की अवस्थाओं पर बौद्ध धर्म की दृष्टि से विचार एवं तुलना ३२१ / कर्म की अवस्थाओं पर हिन्दू आचार दर्शन की दृष्टि से विचार एवं तुलना ३२१ / १४. कर्म विपाक की नियतता और अनियतता जैन दृष्टिकोण ३२३ | बौद्ध दृष्टिकोण ३२४ / नियतविपाक कर्म ३२४ / अनियतविपाक कर्म ३२४ / गीता का दृष्टिकोण ३२५ / निष्कर्ष ३२५ / १५. कर्म-सिद्धान्त पर आक्षेप और उनका प्रत्युत्तर कर्म - सिद्धान्त पर मेकेंजी के आक्षेप और उनके प्रत्युत्तर ३२५ /. Jain Education International २९४ For Private & Personal Use Only ३१३ ३१४ ३१५ ३१८ ३२३. ३२५ www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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