________________
२४४
जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदशनों का तुलनात्मक अध्ययन अनित्य, अव्याकृत, बुद्ध के मौन तथा आत्मा शब्द की सम्यक व्याख्या का अभाव भी है । अतः आवश्यक है कि इनके सम्यक् अर्थ को समझने का थोड़ा प्रयास किया जाये। ६५. भ्रान्त धारणाओं का कारण अनात्म ( अनत्त) का अर्थ ___ बौद्ध दर्शन में 'अत्ता' शब्द का अर्थ है मेरा, अपना । बुद्ध जब अनात्म का उपदेश देते हैं तो उनका तात्पर्य यह है कि इस आनुभविक जगत् में कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं जिसे मेरा या अपना कहा जा सके, क्योंकि सभी पदार्थ, सभी रूप, सभी वेदना, सभी संस्कार और सभी विज्ञान ( चैत्तसिक अनुभूतियाँ ) हमारी इच्छाओं के अनुरूप नहीं. हैं, अनित्य हैं, दुःखरूप हैं । उनके बारे में यह कैसे कहा जा सकता है कि वे अपने हैं, अतः वे अनात्म ( अपने नहीं ) हैं । बुद्ध के द्वारा दिया गया वह अनात्म का उपदेश हमें कुन्दकुन्द के उन वचनों की याद दिलाता है जिसमें उन्होंने ज्ञाता ( आत्मा) का ज्ञान के समस्त विषयों से विभेद बताया है। बौद्ध आगमों में ये ही मूलभूत विचार अनात्मवाद के उपदेश के रूप में पाये जाते हैं। इनका यह फलितार्थ नहीं मिलता है कि आत्मा नहीं है। श्री भरतसिंह उपाध्याय का मन्तव्य है कि बुद्ध का एक भी वचन सम्पूर्ण पालि त्रिपिटक में इस निविशेष अर्थ का उद्धृत नहीं किया जा सकता कि आत्मा नहीं है । जहाँ उन्होंने 'अनात्मा' कहा, वहाँ पंच स्कन्धों की अपेक्षा से ही कहा है, बारह आयतनों और अठारह धातुओं के क्षेत्र को लेकर ही कहा है। इस प्रकार बुद्ध-वचनों में अनात्म का अर्थ 'अपना नहीं' इतना ही है। वह सापेक्ष कथन है । इसका यह अर्थ नहीं है कि 'आत्मा नहीं है' । बुद्ध ने आत्मा को न शाश्वत कहा, न अशाश्वत कहा, न यह कहा कि आत्मा है, न यह कहा कि आत्मा नहीं है। केवल रूपादि पंचस्कन्धों का विश्लेषण कर यह बता दिया कि इनमें कहीं आत्मा नहीं है। बौद्ध दर्शन के अनात्मवाद को उसके आचारदर्शन के सन्दर्भ में ही समझा जा सकता है। बुद्ध के आचारदर्शन का सारा बल तृष्णा के प्रहाण पर है । तृष्णा न केवल स्थूल पदार्थों पर होती है, वरन् सूक्ष्म आध्यात्मिक पदार्थों पर भी हो सकती है। वह अस्तित्व की भी हो सकती है ( भवतृष्णा) और अनस्तित्व की भी (विभवतृष्णा)। अतः उस तष्णा के सभी निवेशनों ( आश्रय स्थानों) को उच्छिन्न करने के लिए बुद्ध ने अनात्म का उपदेश दिया। वस्तुतः अनात्मवाद विनम्रता की आत्यन्तिक कोटि, अनासक्ति की उच्चतम अवस्था और आत्मसंयम की एकमात्र कसौटी है । इस अनात्म का उपदेश उन्होंने तृष्णा के प्रहाण एवं ममत्व के विसर्जन के लिए दिया। यदि उन्हें अनात्म का अर्थ 'आत्मा नहीं' अभिप्रेत होता तो वे उच्छेदवाद का विरोध ही क्यों करते ? बुद्ध ने उच्छेदवाद को अस्वीकार किया है, अतः बौद्ध मन्तव्य में अनात्म का अर्थ 'आत्मा नहीं है' करना अनुचित है। १. समयसार, ३९०-४०२. २. बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, पृ० ४३९-४४०.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org