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________________ जैन, बौद्ध तथा गीता के माचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन गतियों के आधार पर जीवों का वर्गीकरण जैन परम्परा में गतियों के आधार पर जीव चार प्रकार के माने गए हैं-(१) देव, ( २ ) मनुष्य, (३) पशु ( तिर्यञ्च ) और ( ४ ) नारक । जहां तक शक्ति और क्षमता का प्रश्न है देव का स्थान मनुष्य से ऊँचा माना गया है। लेकिन जहाँ तक नैतिक साधना की बात है जैन परम्परा मनुष्यजन्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानती है। उसके अनुसार मानवजीवन ही ऐसा जीवन है जिससे मुक्ति या नैतिक पूर्णता प्राप्त की जा सकती है। जैन परम्परा के अनुसार केवल मनुष्य ही सिद्ध हो सकता है, अन्य कोई नहीं। बौद्ध परम्परा में भी उपर्युक्त चारों जातियाँ स्वीकृत रही हैं लेकिन उनमें देव और मनुष्य दोनों में ही मुक्त होने की क्षमता को मान लिया गया है। बौद्ध परम्परा के अनुसार एक देव बिना मानव जन्म ग्रहण किये देवगति से ही निर्वाण लाभ कर सकता है, जबकि जैन परम्परा के अनुसार केवल मनुष्य ही निर्वाण का अधिकारी है। इस प्रकार जैन परम्परा मानवजन्म को चरम मूल्यवान बना देती है। इस प्रकार आत्मा के स्वरूप का नैतिक दृष्टि से विवेचन करने के पश्चात् अगले अध्याय में हम आत्मा की अमरता की नैतिक मान्यता के सम्बन्ध में विचार करने का प्रयत्न करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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