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________________ २० जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन १२. आत्मा के भेद जैन दर्शन अनेक आत्माओं की सत्ता को स्वीकार करता है। इतना ही नहीं, वह प्रत्येक आत्मा की विभिन्न अवस्थाओं के आधार पर उसके भेद करता है । जैन आगमों में विभिन्न पक्षों की अपेक्षा से आत्मा के आठ भेद किये गये हैं १. द्रव्यात्मा-आत्मा का तात्त्विक स्वरूप । २. कषायात्मा-क्रोध, मान, माया आदि कषायों या मनोवेगों से युक्त चेतना की अवस्था । ३. योगात्मा-शरीर से युक्त होने पर चेतना की कायिक, वाचिक और मानसिक क्रियाओं की अवस्था । ४. उपयोगात्मा-आत्मा की ज्ञानात्मक और अनुभूत्यात्मक शक्तियाँ । यह आत्मा का चेतनात्मक व्यापार है । ५. ज्ञानात्मा-चेतना की विवेक और तर्क की शक्ति । ६. दर्शनात्मा-चेतना की भावात्मक अवस्था । ७. चारित्रात्मा-चेतना की संकल्पात्मक शक्ति । ८. वीर्यात्मा-चेतना की क्रियात्मक शक्ति । उपर्युक्त आठ प्रकारों में द्रव्यात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा और दर्शनात्मा ये चार तात्त्विक आत्मा के स्वरूप के ही द्योतक हैं, शेष चार कषायात्मा, योगात्मा, चारित्रात्मा और वीर्यात्मा ये चारों आत्मा के अनुभवाधारित स्वरूप के निदर्शक हैं। तात्त्विक आत्मा द्रव्य की अपेक्षा से नित्य होती है यद्यपि उसमें ज्ञानादि की पर्यायें होती रहती हैं। अनुभवाधारित आत्मा चेतना की शरीर से युक्त अवस्था है। यह परिवर्तनशील एवं विकारयुक्त होती है। आत्मा के बन्धन का प्रश्न भी इसी अनुभवाधारित आत्मा से सम्बन्धित है । विभिन्न दर्शनों में आत्म-सिद्धान्त के सन्दर्भ में जो पारस्परिक विरोध दिखाई देता है, वह आत्मा के इन दो पक्षों में किसी पक्षविशेष पर बल देने के कारण होता है । भारतीय परम्परा में बौद्ध दर्शन ने आत्मा के अनुभवाधारित पक्ष पर अधिक बल दिया, जबकि सांख्य और शांकर वेदान्त ने आत्मा के तात्त्विक स्वरूप पर ही अपनी दृष्टि केन्द्रित की। जैन दर्शन दोनों हो पक्षों को स्वीकार कर उनके बीच समन्वय का कार्य करता है । नैतिक साधना की दृष्टि से कह सकते हैं कि यह अनुभवाधारित या व्यावहारिक आत्मा नैतिक साधक है और अनुभवातीत शुद्ध द्रव्यात्मा नैतिक साध्य है। विवेक-क्षमता के आधार पर आत्मा के भेद विवेक-क्षमता की दृष्टि से आत्माएँ दो प्रकार की मानी गई है-(१) समनस्क, १. भगवतीसत्र, १२।१०।४६७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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