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आचारदर्शन के तात्त्विक आधार
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जबकि अरबन ने उसे भी स्वतन्त्र रूप से नैतिकता की मान्यता कहा । रशडाल विश्व के बौद्धिक प्रयोजन, काल तथा अमंगल की वास्तविकता को भी नैतिकता की मान्यता के अन्तर्गत ले आते हैं । बोसांके भी अमंगल की वास्तविक सत्ता को स्वीकार करते हैं । संक्षेप में, पाश्चात्य आचारदर्शन में स्वीकृत मुख्य नैतिक मान्यताएँ हैं(१) मनीषा ( विवेकबुद्धि ) और कर्मशक्ति से युक्त आत्मा ( व्यक्तित्व ), ( २ ) आत्मा की अमरता, (३) आत्मा की स्वतन्त्रता, (४) ईश्वर का अस्तित्व ( नैतिक मूल्यों का स्रोत एवं नैतिक जीवन का आदर्श ), (५) नैतिक प्रगति ( नैतिक पूर्णता की सम्भा - वना ) तथा (६) अमंगल ( अशुभ ) की वास्तविकता |
भारतीय आधारवर्शन की नैतिक मान्यताएँ
भारतीय आचारदर्शन में कर्मसिद्धान्त को नैतिकता की मूलभूत मान्यता कहा जा सकता है । कर्मसिद्धान्त कर्म और उनके प्रतिफल के अनिवार्य सम्बन्ध को सूचित करता है । कर्मसिद्धान्त की सहयोगी नैतिक मान्यताएँ हैं— पुनर्जन्म की धारणा (आत्मा की अमरता ) एवं कर्म के चयन की स्वतन्त्रता । इसी प्रकार कर्मफल के प्रदाता अथवा नैतिक जीवन के आदर्श के रूप में ईश्वर के अस्तित्व की मान्यता भी भारतीय आचारदर्शन में रही है । इनके अतिरिक्त भारतीय दर्शन में बन्धन ( दुःख ) और उसके कारण तथा बन्धन से मुक्ति ( दुःख - विमुक्ति ) और उसके उपाय ( साधनापथ ) भी नैतिक मान्यता के अन्तर्गत आते हैं ।
नदर्शन की नैतिक मान्यताएं
जैन दर्शन की तत्त्वयोजना में स्वीकृत नव तत्त्वों का बहुत कुछ सम्बन्ध नैतिक मान्यता से है । फिर भी पाश्चात्य परम्परा के साथ सुविधापूर्ण तुलना के लिए जैन तत्त्वयोजना के आधार पर नैतिक मान्यताओं को निम्न रूप में रखा जा सकता है |
(अ) कर्ता से सम्बन्धित नैतिक मान्यताएँ - ( १ ) आत्मा का बौद्धिक एवं आनन्दमय " स्वरूप, (२) आत्मा की अमरता या पुनर्जन्म का प्रत्यय, (३) आत्मा की स्वतन्त्रता ।
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(ब) कर्म से सम्बन्धित नैतिक मान्यताएँ - ( ४ ) कर्मसिद्धान्त, (५) बन्धन ( दु:ख ) तथा उसके कारण, (६) कर्म का शुभत्व, अशुभत्व एवं शुद्धत्व, (७) बन्धन से मुक्ति के उपाय ( संवर एवं निर्जरा ) ।
(स) नैतिक साध्य से सम्बन्धित नैतिक मान्यताएँ - (८) नैतिक जीवन का ऐहिक आदर्श (अर्हत्व ), (९) नैतिक जीवन का चरम साध्य ( मोक्ष ) ।
बौद्ध आचारदर्शन की नैतिक मान्यताएं
चार आर्यसत्य ही बौद्ध दर्शन की नैतिक मान्यताएँ हैं । दुःख या अमंगल को उपस्थिति यह प्राथमिक नैतिक मान्यता है । दुःख के कारण की व्याख्या के रूप में प्रतीत्यसमुत्पाद दूसरी नैतिक मान्यता है जो कि जैन दर्शन में स्वीकृत कर्मसिद्धान्त
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