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________________ आचारदर्शन का तात्त्विक आधार १७७ १. आचारदर्शन और तत्त्वमीमांसा का पारस्परिक सम्बन्ध जैन दृष्टिकोण १७९ / बौद्ध दृष्टिकोण १८० / गीता का दृष्टिकोण १८१ / सत् के स्वरूप का आचारदर्शन पर प्रभाव १८२ / सत् के स्वरूप की विभिन्नता के कारण १८२ / भारतीय चिन्तन में सत् सम्बन्धी विभिन्न दृष्टिकोण १८३ / २. ( अ ) सत् के अद्वय, अविकार्य एवं आध्यात्मिक स्वरूप की नैतिक समीक्षा १८६ १९१ १९६ शंकर का दृष्टिकोण एकान्त एकतत्त्ववादी नहीं है १८८ / शांकर दर्शन की मूलभूत कमजोरी १८९ / ( ब ) सत् के अनेक, अनित्य और भौतिक स्वरूप की नैतिक समीक्षा बौद्ध दर्शन का अनित्यवादी दृष्टिकोण १९१ | अनित्यवाद एवं क्षणिकवाद १९२ | बुद्ध का अनित्यवाद उच्छेदवाद नहीं है १९२ / सत् के सम्बन्ध में जैन दृष्टिकोण १९४ / जैन दृष्टि कोण की गीता से तुलना १९६/ ३. जैन, बौद्ध और गीता की तत्त्वयोजना की तुलना जैन तत्त्व योजना एवं उसकी नैतिक प्रकृति १९६ / बौद्ध तत्व योजना एवं उसकी नैतिक प्रकृति १९७ / जैन तत्त्व योजना से तुलना १९८ / गीता की तत्त्व योजना १९८ / जैन, बौद्ध और गीता के तत्त्वों की तुलनात्मक तालिका १९९ / ४. नैतिक मान्यताएं पाश्चात्य आचार दर्शन की नैतिक मान्यताएँ २०० | भारतीय आचार दर्शन की नैतिक मान्यताएँ २०१ / जैन दर्शन की नैतिक मान्यताएँ २०१ | बौद्ध आचारदर्शन की नैतिक मान्यताएँ २०१ / गीता की नैतिक मान्यताएँ २०२/ - १७५ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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