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________________ भारतीय और पाश्चात्य नैतिक मानदण्ड के सिद्धान्त १५३ इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन दर्शन और साम्यवादी विचारधारा कुछ अर्थों में एक-दूसरे के निकट हैं। महावीर और बुद्ध की भिक्षु संघ व्यवस्था साम्यमूलक समाजव्यवस्था का ही एक रूप थी जिसमें योग्यता वे. अनुरूप कार्य या साधना और आवश्यकता के अनुरूप उपलब्धि का सिद्धान्त भी किसी रूप में स्वीकृत था । फिर भी बाह्य रूप में दोनों में जिस समानता पर बल दिया गया है, उसके आधार भिन्नभिन्न हैं । साम्यवाद प्रमुख रूप से भौतिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण पर जोर देता है, जबकि जैन दर्शन आध्यात्मिक और व्यक्तिवादी दृष्टिकोण पर जोर देता है। जैन दर्शन का प्रमुख प्रत्यय ‘साम्यवाद' नहीं, वरन् साम्ययोग है। . ११. डब्ल्यू० एम० अरबन का आध्यात्मिक मूल्यवाद और जैन दर्शन अरबन' के अनुसार मूल्यांकन एक निर्णयात्मक प्रक्रिया है, जिसमें सत् के प्रति प्राथमिक विश्वासों के ज्ञान का तत्त्व भी होता है। इसके साथ ही उसमें भावात्मक तथा संकल्पात्मक अनुक्रिया भी है। मूल्यांकन संकल्पात्मक प्रक्रिया का भावपक्ष है। अरबन मूल्यांकन की प्रक्रिया में ज्ञानपक्ष के साथ-साथ भावना एवं संकल्प की उपस्थिति भी आवश्यक मानते हैं। मूल्यांकन में निरन्तरता का तत्त्व उनकी प्रामाणिकता का आधार है। जितनी अधिक निरन्तरता होगी उतना ही अधिक वह प्रामाणिक होगा । मूल्यांकन और मूल्य में अन्तर स्पष्ट करते हुए अरबन कहते हैं कि मूल्यांकन मूल्य को निर्धारित नहीं करता, वरन् मूल्य ही अपनी पूर्ववर्ती वस्तुनिष्ठता के द्वारा मूल्यांकन को निर्धारित करते हैं। . अरबन के अनुसार मूल्य न कोई गुण है, न वस्तु या सम्बन्ध । वस्तुतः मूल्य अपरिभाष्य है, तथापि उसकी प्रकृति को उसके सत्ता से सम्बन्ध के आधार पर जाना जा सकता है। वह सत्ता और असत्ता के मध्य स्थित है। अरबन मिनांग के समान उसे वस्तुनिष्: कहता है। उसका अर्थ 'होना चाहिए' ( Ought to be ) में है। मूल्य सदैव अस्तित्व का दावा करते हैं, लेकिन उनका सत् होना इसी पर निर्भर है, कि सत् को ही मूल्य के उस रूप में विवेचित किया जाये, जिसमें सत्ता और अस्तित्व भी हो। मूल्य की वस्तुनिष्ठता के दो आधार हैं—प्रथम यह कि प्रत्येक वस्तुविषय मूल्य की विधा में आता है और दूसरे प्रत्येक मूल्य उच्च और निम्न के क्रम से स्थित है। अरबन के अनुसार मूल्यों की अनुभूति उनकी किसी क्रम में अनुभूति है यह बिना मूल्यों में पूर्वापरता माने, केवल मनोवैज्ञानिक अवस्था पर निर्भर नहीं हो सकती। नैतिक मल्य-मूल्य की सामान्य चर्चा के बाद अरबन नैतिक मूल्य पर आते हैं। अरबन के अनुसार नैतिक दृष्टि से मूल्यवान होने का अर्थ है मनुष्य के लिए मूल्यवान होना । नैतिक शुभत्व मानवीय मूल्यांकन के सिद्धान्त पर निर्भर है। मानवीय मूल्यांकन के सिद्धान्त को कुछ लोगों ने आकारिक नियमों की व्यवस्था के रूप में. १. देखिए-कण्टेम्पररि एथिकल थ्योरीज, अध्याय १७, पृ० २७४-२८४. १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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