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________________ ८. मानवतावादी सिद्धान्त और जैन आचारदर्शन १. आत्मचेतनतावादी दृष्टिकोण और जैन दर्शन १४१ / २. विवेकवाद और जैन दर्शन १४२ / ३. आत्मसंयम का सिद्धान्त और जैन दर्शन १४३ / ९. सत्तावादी नीतिशास्त्र और जैन दर्शन आचारदर्शन को प्रमुखता १४५ / वैयक्तिक नीतिशास्त्र १४६ / अन्तर्मुखी चिन्तन १४६ / शाश्वत आनन्द पदार्थों के भोग में नहीं १४८ | १०. मार्क्सवाद और जैन आचार दर्शन भौतिक एवं आध्यात्मिक आधारों में अन्तर १५० / आर्थिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण में अन्तर १५० / भोगमय एवं त्यागमयं जीवन-दृष्टि में अन्तर १५१ / मानवमात्र की समानता में आस्था १५२ / संग्रह की प्रवृत्ति का विरोध १५२ / समत्व का संस्थापन १५२ / साम्य नैतिकता का प्रमापक १५२ / ११. डब्ल्यू ० एम० अरबन का आध्यात्मिक मूल्यवाद और जैन दर्शन नैतिक मूल्य १५३ / १२. भारतीय दर्शनों में जीवन के चार मूल्य १. जैनदृष्टि में पुरुषार्थचतुष्टय १५५ / २. बौद्ध दर्शन में पुरुषार्थचतुष्टय १५७ / ३. गीता में पुरुषार्थ चतुष्टय १५८ / १३. चारों पुरुषार्थों की तुलना एवं क्रम निर्धारण १४. मोक्ष सर्वोच्च मूल्य क्यों ? १५. भारतीय और पाश्चात्य मूल्यसिद्धान्तों की तुलना १६. नैतिक प्रतिमानों का अनेकान्तवाद १७. जैन दर्शन में सदाचार का मानदण्ड Jain Education International ९६ For Private & Personal Use Only - १३८ १४५ १४९ १५३ १५५ १६० १६३ १६३ १६६ १७१ www.jainelibrary.org
SR No.001674
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1987
Total Pages586
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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