SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 396 साध्वी मोक्षरला श्री विवाह-संस्कार वर्तमान में गृहस्थों में शीलधर्म को मर्यादित, सुरक्षित और संतान-परम्परा को निर्दोष बनाए रखने के लिए तथा पाशविक काम-सेवन की दूषित मनोवृत्ति से मानव-समाज को संरक्षण प्रदान करने हेतु यह संस्कार आवश्यक है। आज हम देखते हैं कि व्यक्ति मात्र अपने काम-वासनाओं की पूर्ति के लिए इधर से उधर भटकता रहता है। इस संस्कार के माध्यम से उसकी इस पाशविक-वृत्ति को संयमित करने का प्रयत्न किया जाता है तथा उसके दायरे को सीमित किया जाता है। मानव-जीवन में यह संस्कार नहीं होता, तो शायद वर्तमान समय में हमें जो भाई-बहन, माता-पिता आदि सम्बन्ध दिखाई दे रहे हैं, वे सम्बन्ध शायद देखने को भी नहीं मिलते। इस प्रकार वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता स्वतः ही सिद्ध हो जाती है। व्रतारोपण-संस्कार गर्भाधान से लेकर विवाहपर्यन्त के सभी संस्कारों के माध्यम से व्यक्ति अपनी दैहिक आवश्यकताओं एवं सामाजिक-दायित्व की पूर्ति करता है, लेकिन इन सामाजिक-दायित्वों के साथ ही व्यक्ति अपने नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक-दायित्वों से वंचित न हो, इसलिए व्रतारोपण-संस्कार किया जाना आवश्यक है। नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक-दायित्वों को पूर्ण करने में सहायक इन संस्कारों का यदि जीवन में आचरण नहीं होता, तो यह संसार अब तक शायद विनाश की कगार पर जा खड़ा होता। व्रतारोपण-संस्कार में निर्दिष्ट व्रतों का आचरण व्यक्ति को अहिंसक, सत्यवादी, ईमानदार आदि गुणों से युक्त करता है। वर्तमान समय में जो लोग अपने नैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक-दायित्वों से वंचित हो रहे हैं, उनके लिए यह संस्कार कारगर सिद्ध हो सकता है। अन्त्य-संस्कार इस संस्कार के माध्यम से व्यक्ति से जीवन के अन्तिम छोर पर संसार के प्रति विरक्तता के भाव को पैदा करके आत्मसाधना करवाई जाती है। इस भौतिकवादी युग में जीव इतना ज्यादा पौद्गलिक विषयों में आसक्त बन जाता है कि वह वास्तव में अपने मूल अस्तित्व को भी भूल जाता है और पर में स्व का आरोपण करने लगता है। मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ और मुझे कहाँ जाना है?- ये सब बातें सोचने का उसको अवकाश ही नहीं मिलता है। ऐसी स्थिति में जीव को अन्तिम समय में संसार से विरक्त करके आत्म-चिन्तन में लगाने हेतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy