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________________ 392 साध्वी मोक्षरत्ना श्री महत्व है। प्रसवस्थल एवं प्रसव के समय माता एवं शिशु के शरीर की संक्रामक रोगों से मुक्ति के लिए भी यह संस्कार किया जाता है और इस संस्कार के माध्यम से प्रसूता, प्रसव एवं प्रसवस्थल की शुद्धि की जाती है । सूर्य-चन्द्र-दर्शन- संस्कार बालक के अन्दर सद्गुणों का विकास करने हेतु यह संस्कार भी अत्यन्त उपयोगी है। सूर्य-चन्द्र के दर्शन से बालक में तेजस्विता, गतिशीलता, परोपकारता, सौम्यता, शीतलता आदि गुणों का अविर्भाव होता है, क्योंकि सूर्य-चन्द्र स्वयं इन गुणों के प्रतीक हैं। वर्तमान जीवन में हम बालकों में इन गुणों का अभाव प्रायः देखते हैं, जैसे- हम यदि बालक को उसके किसी गलत कृत्य पर डाँट देते हैं, तो वह तुरन्त क्रोधित हो जाता है, क्योंकि उसमें सौम्यता के गुणों का अभाव होता है, जिसके कारण वह अपनी प्रतिक्रिया क्रोध के रूप में अभिव्यक्त करता है। इसी प्रकार परोपकार आदि गुणों का भी विकास होना वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त आवश्यक है। यह संस्कार न केवल सद्गुणों के विकास के लिए किया जाता है, अपितु बालक को बाहूयजगत् और परिवेश से परिचित कराने के हेतु भी किया जाता है, क्योंकि उसे आगे इसी परिवार में जीना है। क्षीराशन- संस्कार शिशु के शरीर का समुचित विकास करने हेतु यह संस्कार अत्यन्त उपयोगी है। इस संस्कार में शिशु को माता का दुग्धपान कराया जाता है, जो उसके स्वास्थ्य हेतु पथ्यरूप होता है तथा उसके शारीरिक विकास का आधार होता है। आधुनिक युग में चिकित्सक भी इस मत का समर्थन करते हैं कि शिशु को यदि उसकी प्रारम्भिक वय में माता का ही दूध न देकर गाय-भैंस आदि का दूध दिया जाए तो वह शिशु के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डाल सकता है तथा उसे उल्टी, दस्त अपच आदि की शिकायत हो सकती है, अतः शिशु के स्वास्थ्य हेतु यह संस्कार अत्यन्त आवश्यक है। षष्ठी-संस्कार इस संस्कार में षष्ठीमाता अर्थात् मातृकादेवी की पूजा-उपासना की जाती है। भारतीय - परम्परा में माता की उपासना का बहुत महत्त्व माना गया है। यह संस्कार मात्र भारतीय मातृसंस्कृति की उपासना का प्रतीक ही नहीं है, वरन् माता के प्रति व्यक्तियों के कर्त्तव्यों का बोध भी कराता है, किन्तु वर्तमान में हम देखते हैं कि लोग ऐसी प्रक्रियाओं को अंधविश्वास मानकर इनसे दूर होते जा रहे हैं, जिसका परिणाम हमारे समक्ष आज उपस्थित है। लोग अपनी मातृमूलक संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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