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________________ 382 साध्वी मोक्षरत्ना श्री के उल्लेख मिलते हैं, किन्तु किन्हीं विशेष परिस्थितियों में शुभमुहूर्त देखे बिना भी राज्याभिषेक करने के निर्देश भी मिलते हैं। विष्णुधर्मोत्तर में कहा गया है कि राजा के मर जाने पर उत्तराधिकारी के राज्याभिषेक के लिए किसी शुभ घड़ी की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, किन्तु दूसरी ओर राजनीतिप्रकाश के अनुसार राजा के मर जाने पर उत्तराधिकारी को मुकुट एक वर्ष के बाद पहनाना चाहिए। संस्कार का कर्त्ता आचारदिनकर के अनुसार गच्छनायक पदारोपण की विधि स्वगुरु अथवा वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध गीतार्थ के द्वारा, जैन ब्राह्मण आचार्य-पद आदि की विधियाँ, यति आचार्य अथवा आचार्य-पद को प्राप्त ब्राह्मण द्वारा करवाई जाती है। वैदिक-परम्परा में आचार्य-पदारोपण की विधि आचार्यादि द्वारा तथा राज्याभिषेक आदि पदारोपण की विधि राजपुरोहित आदि द्वारा करवाई जाती है। वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में इसकी निम्न विधि प्रस्तुत की हैपदारोपण की विधि इस विधि में सर्वप्रथम गच्छनायक के पदारोपण की विधि का उल्लेख करते हुए वर्धमानसूरि ने गच्छनायक-पद के योग्य मुनि के लक्षणों का निरूपण किया है। तदनन्तर गच्छनायक पदारोपण की विधि से पूर्व क्या करें? इसका उल्लेख करते हुए गच्छनायक- पद विधि का वर्णन किया है। आचार्य-पदोचित लग्न के आने पर स्वगुरु अथवा अन्य वयोवृद्धाचार्य वासचूर्ण को अभिमंत्रित करके उस आचार्य के सिर पर डालते हैं तथा गणधर विद्या से तिलक करते हैं। चतुर्विधसंघ भी परमेष्ठीमंत्रपूर्वक चन्दन द्वारा तिलक, अथवा वासक्षेप करते हैं। तत्पश्चात् गुरु द्वारा आशीर्वाद प्रदान करने पर सभी उस आचार्य पर अभिमंत्रित वासचूर्ण एवं अक्षत निक्षेपित करते हैं। तदनन्तर वन्दन-विधि करते हैं। इसके अतिरिक्त उपाध्याय, साधु आदि को गणानुज्ञा देते समय गणानुज्ञा सम्बन्धी जो कथन है, वह वाचनानुज्ञा अधिकार में दृष्टव्य है। पदारोपाधिकार में यति-पदारोपण की यह विधि बताई गई है। तदनन्तर विप्रों की पदारोपण-विधि बताई गई है। विनों में आचार्य, उपाध्याय, स्थानपति एवं कर्माधिकारी-ये चार प्रकार के पद होते हैं। विप्राचार्य की * देखे- धर्मशास्त्र का इतिहास (भाग-द्वितीय), डॉ. पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-३, पृ.- ६११, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, द्वितीय संस्करण : १६७३. " आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-चालीसवाँ, पृ.- ३७६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण : १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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