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________________ वर्षमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 367 मिलता है, किन्तु इनके अतिरिक्त १४ अन्य दोषों का भी उल्लेख मूलाचार में है।७६३ प्रत्याख्यान आवश्यक में वर्धमानसूरि ने (१) मूलगुणप्रत्याख्यान एवं (२) उत्तरगुण प्रत्याख्यान- इन दो भेदों का उल्लेख करते हुए उत्तरगुणप्रत्याख्यान में दस प्रकार के प्रत्याख्यानों का उल्लेख किया है। तदनन्तर अन्तिम अद्धाप्रत्याख्यान के पुनः नवकारसी आदि दस प्रत्याख्यानों का उल्लेख कर उनके प्रत्याख्यानसूत्रों का उल्लेख किया है।६४ दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में भी हमें मूलगुणप्रत्याख्यान एवं उत्तरगुणप्रत्याख्यान के साथ-साथ दस प्रकार के उत्तरगुणप्रत्याख्यानों का उल्लेख मिलता है, किन्तु वर्धमानसूरि ने प्रत्याख्यान के जिन दस प्रकारों का उल्लेख किया है, उनमें से अन्तिम दो प्रत्याख्यानों-सांकेतप्रत्याख्यान एवं अद्धाप्रत्याख्यान के स्थान पर हमें मूलाचार में अध्वानमत एवं सहेतुक प्रत्याख्यान का उल्लेख मिलता है। ५५ वर्धमानसूरि ने अद्धाप्रत्याख्यान के जिन १० प्रत्याख्यानों का तथा उनके सूत्रों का उल्लेख किया है, उसका उल्लेख हमें मूलाचार में नहीं मिलता है। आचारदिनकर में हमें प्रत्याख्यानशुद्धि के छः प्रकारों (१) श्रद्धाशुद्धि (२) ज्ञानशुद्धि (३) विनयशुद्धि (४) अनुभाषणशुद्धि (५) अनुपालनशुद्धि एवं (६) भावशुद्धि का भी उल्लेख मिलता है।०६६ दिगम्बर-परम्परा के मूलाचार ग्रन्थ में हमें ज्ञानशुद्धि को छोड़कर शेष पाँच शुद्धियों का ही उल्लेख मिलता है। तदनन्तर आचारदिनकर में इन षडावश्यकों की विधियों का उल्लेख हुआ है। इस श्रृंखला में सर्वप्रथम उन्होंने सामायिक विधि का उल्लेख किया है। इसमें उन्होंने सर्वविरति एवं देशविरति-सामायिक की विधि के सम्बन्ध में मात्र निर्देश देकर श्रावकों द्वारा जो अवश्य करणीय हैं, ऐसे सामायिक आवश्यक का उल्लेख किया है। आचारदिनकर के अनुसार सामायिक की संक्षिप्त विधि इस प्रकार है- सर्वप्रथम मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें। फिर क्रमशः नमस्कारमंत्र, सामायिक का पाठ एवं इरियावही करें। फिर आसन की प्रतिलेखना, स्वाध्याय, प्रत्याख्यान एवं ७६३ मूलाचार, सम्पादकद्वय- डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं डॉ. श्रीमती मुन्नी जैन, अधिकार- सातवाँ, पृ.-३६५-६७, भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत् परिषद, प्रथम संस्करण : १६६६. * आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय- अड़तीसवाँ, पृ.- ३१२-३१३, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम __ संस्करण : १६२२. ७५ मूलाचार, सम्पादकद्धयः डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं डॉ. श्रीमती मुन्नी जैन, अधिकार- सातवाँ, पृ.-३८२-८३, भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत् परिषद्, प्रथम संस्करण : १६६६. " आचारदिनकर, वर्षमानसूरिकृत, उदय-अड़तीसवाँ, पृ.- ३१७, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण : १६२२. ६७ आचारदिनकर, वर्षमानसूरिकृत, उदय-अड़तीसवाँ, पृ.- ३१६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण : १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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