SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 365 वर्धमानसूरि ने इसी आवश्यक में स्वाध्याय के प्रकारों का वर्णन भी किया है, किन्तु ये भेद श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों से कुछ हटकर हैं। वर्धमानसूरि ने स्वाध्याय के (१) वाचना (२) पृच्छना (३) आम्नाय एवं (४) आगम- ये चार भेद बताए हैं, जबकि दिगम्बर एवं श्वेताम्बर परम्परा के अन्य ग्रन्थों में स्वाध्याय के पाँच प्रकारों का उल्लेख मिलता है। अनुप्रेक्षा स्वाध्याय को वर्धमानसूरि ने स्वाध्याय के प्रकार के रूप में उल्लेखित नहीं किया है। तदनन्तर वर्धमानसूरि ने चतुर्विंशति आवश्यक के स्वरूप एवं उनके अन्तर्निहित सूत्रों का उल्लेख किया है। इसके अन्तर्गत वर्धमानसूरि ने नमुत्थुणसूत्र, लोगस्ससूत्र, अर्हत् चैत्यस्तव, श्रुतस्तव, सिद्धस्तव, वैयावृत्त्यकर कायोत्सर्गसूत्र, चैत्य- साधुस्मरणसूत्र, एवं जयवीयरायसूत्र का समावेश किया है।०५६ दिगम्बर-परम्परा में लोगुज्जोययरे (लोगस्स) सूत्र का उल्लेख थोस्सामिदण्डक के रूप में मिलता है किन्तु इसके अतिरिक्त अन्य सूत्रों का उल्लेख हमें वहाँ देखने को नहीं मिला। यद्यपि श्वेताम्बर परम्परा की भाँति ही दिगम्बर-परम्परा में भी चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक का तात्पर्य अर्हत् परमात्मा की स्तुति करना ही माना है। दिगम्बर-परम्परा में सामायिक की भाँति ही स्तव के भी छ: भेद माने है।०१८ श्वेताम्बर-परम्परा में हमें इन भेदों का उल्लेख नहीं मिलता है। वन्दन आवश्यक के अन्तर्गत वर्धमानसरि ने वन्दन के १६८ विकल्पों का उल्लेख करते हुए उनका विस्तृत विवेचन किया है०५६ तथा उनसे सम्बन्धित सूत्रों का उल्लेख किया है। दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में हमें इन १६८ विकल्पों में निहित कुछ विषयों का ही उल्लेख मिलता है, जैसे- वर्धमानसरि ने वन्दन के पाँच नाम बताए है। दिगम्बर-परम्परा में भी हमें वन्दन के पाँचों नामों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि वहाँ स्पष्ट रूप से तो (१) कृति (२) चितिकर्म (३) पूजाकर्म एवं (४) विनयकर्म- इन चार नामान्तरों का ही उल्लेख हुआ है, ६० o आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय- अड़तीसवाँ, पृ.- २६४, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण : १६२२. ७५६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-अड़तीसवाँ, पृ.- २६७-२७१, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण : १६२२. ७४० मूलाचार, सम्पादकद्वयः डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं डॉ. श्रीमती मुन्नी जैन, अधिकार- सातवाँ, पृ.-३३५,भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत् परिषद्, प्रथम संस्करण : १६६६. मूलाचार, सम्पादकद्वयः डॉ. फूलचन्द्र जैन एवं डॉ. श्रीमती मुन्नी जैन, अधिकार- सातवाँ, पृ.-३३४,भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत परिषद्, प्रथम संस्करण : १६६६. ६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-अड़तीसवाँ, पृ.- २७२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण : १६२२. ७६० मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन, लेखक- डॉ. फूलचन्द्र जैन, अध्याय-२, पृ.-१०२, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, प्रथम संस्करण : १६८७. Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy