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________________ वर्षमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 343 है? इस समस्या का समाधान भी स्वयं ग्रन्थकार ने इसी प्रकरण में करते हुए कहा है कि अरिहंत परमात्मा न तो किसी पर तुष्ट ही होते हैं और न ही किसी पर रुष्ट, किन्तु फिर भी भक्तजन अपने मानसिक संतोष और चित्त की शान्ति के लिए अरिहंत परमात्मा को बलि प्रदान करते है। बलि-विधान कब किया जाना चाहिए? इस सम्बन्ध में हमें आचारदिनकर में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं मिलता है। सामान्यतया प्रतिष्ठा, शान्तिककर्म, पौष्टिककर्म आदि में यह विधान किया जाता है। श्वेताम्बर जैन-परम्परा में वर्तमान में भी यह कृत्य प्रतिष्ठा-विधि, शान्तिक-कर्म, महापूजन आदि में किया जाता है। दिगम्बर-परम्परा में भी सामान्यतया यह कृत्य प्रतिष्ठाविधि, शांतिक कर्म आदि में किया जाता है। यद्यपि वैदिक-परम्परा में भी यह कृत्य उपर्युक्त पँसगों पर तो किया ही जाता है, किन्तु इसके साथ ही उस परम्परा में प्रतिदिन भी यह बलि-विधान किया जाता है। दक्ष०६ के अनुसार दिन के पाँचवें भाग में गृहस्थ को अपनी सामर्थ्य के अनुसार देवताओं, पितरों, मनुष्यों, यहाँ तक कि कीड़ों-मकोड़ों को भोजन देना चाहिए। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन-परम्परा में तो किन्हीं अवसर विशेष पर ही बलि-विधान किया जाता है, जबकि वैदिक-परम्परा में प्रतिदिन भी इसे किए जाने के उल्लेख मिलते हैं। संस्कार का कर्ता श्वेताम्बर जैन-परम्परा में यह संस्कार गृहस्थ गुरु (विधिकारक) द्वारा करवाया जाता है। दिगम्बर-परम्परा में भी यह संस्कार प्रतिष्ठाचार्य या पण्डित द्वारा करवाया जाता है। वैदिक-परम्परा में यह विधान ब्राह्मण पण्डितों द्वारा करवाया जाता है। वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में इसकी निम्न विधि निरूपित की बलिकर्म विधान देवताओं के संतर्पण के लिए उन्हें किस प्रकार से नैवेद्य अर्पित करेंइसकी विधि का प्रतिपादन करते हुए वर्धमानसूरि ने सर्वप्रथम जिनप्रतिमा के समक्ष चढ़ाए जानी वाली नैवेद्य विधि का उल्लेख किया है। इसके लिए भविकजन, गृह-आचार के अनुसार जो भी भोज्य पदार्थ बनाए गए हैं, उनमें से तेल से ७०६ धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), डॉ. पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-२०, पृ.- ४०४, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १९८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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