________________
316
अध्याय-६
आचारदिनकर में वर्णित सामान्य आठ संस्कार
साध्वी मोक्षरत्ना श्री
प्रस्तुत अध्याय में आचारदिनकर में वर्णित आठ सामान्य संस्कारों की चर्चा की गई है। गृहस्थ एवं मुनि- इन दोनों सम्बन्धित आठ संस्कारों के सम्बन्ध में वैदिक एवं दिगम्बर - परम्परा में क्या अवधारणा है? उनमें परस्पर क्या समानता है एवं क्या भिन्नता है? इसका भी यहाँ विवेचन किया गया है।
में
आचारदिनकर में वर्णित आठ संस्कारों में- (१) प्रतिष्ठा - विधि (२) शान्तिक - कर्म ( ३ ) पौष्टिक - कर्म (४) बलि-विधान ( ५ ) प्रायश्चित्त - विधि ( ६ ) आवश्यक - विधि (७) तप - विधि एवं (८) पदारोपण - विधि से हमें कुछ विधियों की चर्चा दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में मिलती हैं, जैसे प्रतिष्ठा - विधि, शान्तिक-कर्म, बलि-विधान, तप - विधि आदि, किन्तु वहाँ इन्हें संस्कारों के रूप में न मानकर एक धार्मिक कृत्य के रूप में माना गया है। यद्यपि दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में ये विधियाँ प्रकारान्तर रूप में प्रचलित हैं, और उनका उद्देश्य प्रायः आचारदिनकर में वर्णित आठ संस्कारों के अभिप्राय से मिलता है।
दिगम्बर- परम्परा में आचारदिनकर की ही भाँति प्रायश्चित्त-विधि का उल्लेख मिलता है, किन्तु वहाँ प्रायश्चित्त की विधि कुछ भिन्न है, जिसका विवेचन हम प्रसंग आने पर करेंगे।
इस प्रकार इन तीनों परम्पराओं की इन संस्कारों के सम्बन्ध में क्या - क्या अवधारणाएँ हैं, इसका विश्लेषण हम आगामी पृष्ठों में करेंगे। प्रतिष्ठा विधि
प्रतिष्ठा - विधि का स्वरूप
भाषा - जगत् में प्रतिष्ठा शब्द के उनके अर्थ हैं- ठहरना, रहना, स्थिति, स्थायित्व, उच्चपद, प्रमुखता, ख्याति, यश इत्यादि । यहाँ पर प्रतिष्ठा शब्द का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org