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________________ 294 साध्वी मोक्षरला श्री करना चाहिए, किन्तु यतिदिनचर्या के अनुसार साधु को परमेष्ठीमंत्र का स्मरण करते हुए चिन्तन करना चाहिए किं नायरामि किच्चं? किं कयमहियं? अभिग्गहो कोवा। अप्पा परोऽवि पासइ किं महं? इय चिंतइ महप्पा।। इस गाथा का चिन्तन करने के बाद उसे विधिपूर्वक मूत्र का विसर्जन करना चाहिए। सामाचारी'६५ में भी मुनि-दिनचर्या के सन्दर्भ में साधु को निद्रा का त्याग करके चिन्तन करने का निर्देश दिया गया है, यद्यपि सामाचारी में निर्दिष्ट गाथा यतिदिनचर्या ग्रन्थ में वर्णित गाथा से भिन्न है, किन्तु इसमें निहित भाव प्रायः समान ही हैं। आचारदिनकर के अनुसार ८६ उपर्युक्त क्रिया करने के पश्चात् साधु को गमनागमन में लगे दोषों की आलोचना करके शक्रस्तव का पाठ करना चाहिए और उसके बाद कुस्वप्न-दुःस्वप्न के विशोधनार्थ कायोत्सर्ग करके-"इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्झाए" से लेकर "राईओ अइआरो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं" का पाठ बोलकर शय्या सम्बन्धी दोषों की आलोचना करनी चाहिए और उसके बाद मुनि को रात्रि की एक घटिका शेष रहने तक शास्त्र का स्वाध्याय, स्तोत्रादि का पाठ, नमस्कारमंत्र का जाप या अन्य विद्या का धीमे-धीमे स्वर से पाठ करना चाहिए। यतिदिनचर्या ग्रन्थ के अनुसार'८७ मुनि को मूत्र का विसर्जन करने के पश्चात् ईर्यापथिकी सम्बन्धी दोषों की आलोचना, कुस्वप्न-दुःस्वप्न के विशोधनार्थ कायोत्सर्ग एवं मुनि-भगवंतों को वन्दन करने के बाद स्वाध्याय करना चाहिए। सामाचारी में भी स्वाध्याय करने तक की यही विधि बताई गई है, किन्तु इस विधि में ग्रन्थकार ने गमनागमन में लगे दोषों की आलोचना करने के पश्चात् चैत्यवंदन करने का भी निर्देश दिया है।८८ इस प्रकार गच्छ-परम्परा के अनुसार इन विधियों में कुछ अन्तर दिखाई देता है। यद्यपि यतिदिनचर्या सम्बन्धी अन्य क्रियाओं जैसे-रात्रिप्रतिक्रमण करना, स्वाध्याय करना, पात्र की प्रतिलेखना करना, चैत्यवंदन करना, आहार-पानी की गवेषणा करना, आहार-पानी ग्रहण करने के बाद गमनागमन एवं पिण्डेंषणा सम्बन्धी दोषों की आलोचना करना, गुरु के समक्ष भिक्षाचर्या का वर्णन करना, ५८४यतिदिनचर्या, सं.-जिनेन्द्रसूरी, प्र.-२ से ३, श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, जामनगर, प्रथम संस्करण १६६७ १८५सामाचारी, तिलकाचार्यविरचित, प्रकरण-२१, पृ.- २६, सेठ डाह्याभाई मोकमचन्द, अहमदाबादः १६६०. आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय- तीसवाँ, पृ.-१२७, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. यतिदिनचर्या, सं.-जिनेन्द्रसूरी, पृ.-२-३, श्री हर्षपुष्पामृत जैनग्रन्थमाला, जामनगर, प्रथम संस्करण १६६७. सामाचारी, तिलकाचार्य विरचित, प्रकरण-२१, पृ.-२६, सेठ डाह्याभाई मोकमचन्द, अहमदाबादः १६६०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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