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________________ 292 साध्वी मोक्षरत्ना श्री मुनि विधिपूर्वक संथारा पोरसी करे। संथारा पोरसी करने के पश्चात् मुनि किस प्रकार से शयन करे तथा रात्रि का तृतीय प्रहर व्यतीत होने पर पुनः किस प्रकार से स्वाध्याय करे- इसका भी मूलग्रन्थ में उल्लेख किया गया है। स्थानाभाव के कारण उसका विस्तृत उल्लेख हम यहाँ नहीं कर रहे हैं। एतदर्थ विस्तृत जानकारी के लिए मेरे द्वारा अनुदित आचारदिनकर के द्वितीय भाग के तीसवें उदय को देखा जा सकता है। तुलनात्मक विवेचन यद्यपि दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में आचारदिनकर के समान यति दिनचर्या का एक ही स्थान पर विधिवत् उल्लेख हमें देखने को नहीं मिला, किन्तु इनसे सम्बन्धित जिन-जिन विषयों का उल्लेख हमें इन परम्पराओं के ग्रन्थों में यत्र-तत्र प्रकीर्ण रूप से मिला है, उसका हम यथास्थान उल्लेख करेंगे। श्वेताम्बर-परम्परा में इस विधि से सम्बन्धित उल्लेख हमें उत्तराध्ययनसूत्र, यतिदिनकृत्य, यतिदिनचर्या, सामाचारी, पंचवस्तु आदि ग्रन्थों में तो मिलते ही हैं, इनके अतिरिक्त प्रवचनसारोद्धार आदि ग्रन्थों में भी यतिदिनचर्या से सम्बन्धित क्रियाओं के उल्लेख मिलते हैं, जिनके आधार पर हम यहाँ तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करेंगे। वर्धमानसूरि ने मुनिजीवन की दिवस-रात्रि की चर्याविधि का उल्लेख करने से पूर्व सर्वप्रथम मुनि के उपकरणों की चर्चा की है।०६ इस विषय में उन्होंने जिनकल्पी, स्थविरकल्पी, प्रत्येकबुद्ध एवं साध्वी के उपकरणों की संख्या, उपकरणों का परिमाण, उनकी उपयोगिता, जिनकल्पी की उपधि के सम्बन्ध में विभिन्न विकल्पों का, जिनकल्प का परीक्षण किस प्रकार से होता है, इसका तथा मुनियों द्वारा रखे जाने वाले दण्ड के प्रकार, परिमाण आदि का विस्तृत विवेचन किया है। मुनियों के उपकरणों आदि का ठीक ऐसा ही वर्णन ओघनियुक्ति'७७ एवं प्रवचनसारोद्धार ७८ में भी मिलता है। यतिदिनचर्या ग्रन्थ-७६ में भी स्थविर कल्पियों की उपधि की चर्चा मिलती है। यतिदिनचर्या में मुनि के दंड के पर्व सम्बन्धी नियमों का भी उल्लेख मिलता है, अर्थात् दंड में कितने पर्व हों, तो उसके क्या ५७६आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय- तीसवाँ, पृ.-१२१-१२७, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. ५७ ओपनियुक्ति, सं.- विजयजिनेन्द्रसूरी, सूत्र- ६६८-६८०, श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, जामनगर, प्रथम संस्करण १६८६. ५"प्रवचन सारोद्धार, अनु.-हेमप्रभाश्रीजी, द्वार-६०-६२, पृ.-२२०-२३८, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, प्रथम __ संस्करण १६६६. ५७यतिदिनचर्या, सं.-जिनेन्द्रसूरी, पृ.-६०-६४, श्री हर्षपुष्पामृत जैनग्रन्थमाला, जामनगर, प्रथम संस्करण १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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