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________________ 278 साध्वी मोक्षरत्ना श्री बताया गया है कि कुमारी या विवाहिता के वैराग्यवासित होने पर उसके स्वजनों यथा- पति,पुत्र, पिता या बन्धुजनों से अनुज्ञा होने पर ही उसे प्रव्रजित करें। उसके बिना उसे दीक्षा लेना या देना नहीं कल्पता है। साध्वी की सम्पूर्ण दीक्षाविधि मुनिदीक्षा-विधि के समान ही है, मात्र शिखासूत्र का उपनयन आचार्य या गुरु के द्वारा नहीं होता है और वेशदान भी गुरु के हाथों से नहीं होता है। एतदर्थ विस्तृत जानकारी हेतु मेरे द्वारा अनुदित आचारदिनकर के द्वितीय भाग के सत्ताईसवें उदय को देखा जा सकता है। तुलनात्मक अध्ययन श्वेताम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में साध्वियों को दीक्षा प्रदान करने सम्बन्धी किसी पृथक् विधि-विधान का वर्णन नहीं मिलता है। सामान्यतः पुरुष को दीक्षा प्रदान करने की जो विधि है, वही विधि स्त्रीदीक्षा के सम्बन्ध में भी प्रचलित रही है, जिसे स्वयं ग्रन्थकार ने भी स्वीकार किया है। दिगम्बर-परम्परा में साध्वी को दीक्षा प्रदान करने की विधि क्या रही है- इस सम्बन्ध में कुछ कहना कठिन कार्य है, क्योंकि दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में साध्वी को दीक्षा प्रदान करने की किसी स्वतंत्र विधि का उल्लेख नहीं मिलता। दूसरे, दिगम्बर-परम्परा में साध्वी को महाव्रतों का आरोपण उपचार से माना जाता है, क्योंकि उसकी आर्यिकादीक्षा भी सवस्त्र ही होती है। दिगम्बर-परम्परा का कहना है कि वस्त्र परिग्रह है अतः साध्वी को परमार्थतः अपरिग्रह महाव्रत नहीं होता है, किन्तु यापनीय-सम्प्रदाय में साध्वी के वस्त्र को संयमोपकरण मानकर उसे अपरिग्रह-महाव्रत परमार्थतः माना गया है। बौद्ध-परम्परा में भी स्त्रियों को दीक्षा प्रदान करने तथा उसकी विधि का उल्लेख मिलता है। जिस प्रकार जैन-परम्परा में प्रारम्भ से ही स्त्रीदीक्षा के उल्लेख मिलते है, बौद्ध-धर्म में स्त्रियों का संघप्रवेश धर्म के संस्थापक की इच्छा के विपरीत तथा अनेक आशंकाओं के साथ हुआ था,५६० जिसके परिणामस्वरूप प्रव्रज्या से पूर्व उन्हें आठ गुरुधर्मा, अर्थात् शर्तों के पालन का बन्धन था, किन्तु जैनधर्म में स्त्रियों के संघप्रवेश को किसी आशंका की दृष्टि से नहीं देखा गया था और न ही उनके लिए बौद्ध-परम्परा की भाँति कुछ शर्तों का पालन अनिवार्य माना गया, यद्यपि पुरुष को ज्येष्ठ मानकर स्थविर साध्वी भी नवदीक्षित मुनि को वंदन करे- यह-परम्परा दोनों में ही समान है। जैन और बौद्ध-दोनों संघों में जाति, धर्म, रंग, रूप, लिंग, का ख्याल किए बिना प्रत्येक स्त्री-पुरूष को प्रवेश की अनुमति थी, तथापि संघ को सुचारू २६ जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ, डॉ. अरूणप्रतापसिंह, अध्याय-१, पृ.-१२, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, प्रथम संस्करण १६८३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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