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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 239 के बाद छेदोपस्थापनीयरूप बड़ी दीक्षा दी जाती है। उसकी जघन्यकाल-मर्यादा सात अहोरात्र की मध्यमकाल मर्यादा चार मास की एवं उत्कृष्टकाल-मर्यादा छह मास की कही गई है।६° काल विशेष में यह कालमर्यादा बढ़ाई भी जा सकती है। यदि छेदोपस्थापनीय चारित्र का अर्थ जिनकल्प की दीक्षा माना जाए, तो उसके लिए १८ वर्ष की दीक्षापर्याय और ३० वर्ष की आयु आवश्यक मानी गई है। नवदीक्षित साधु सात रात्रि के बाद कल्पाक (बडी दीक्षा के योग्य) कहा जाता है और गुण की अपेक्षा आवश्यकसूत्र सम्पूर्ण अर्थ एवं विधिसहित कंठस्थ कर लेने पर, 'जीवादि का एवं पंच समितियों का ज्ञान कर लेने पर', दशवैकालिकसूत्र के चार अध्ययन की अर्थसहित वाचना लेकर कंठस्थ कर लेने पर एवं प्रतिलेखन आदि दैनिक क्रियाओं का अभ्यास कर लेने पर कल्पाक, अर्थात् छेदोपस्थापनीय चारित्र के योग्य कहा जाता है। दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराणग्रन्थ में इस प्रकार का कोई निर्देश नहीं मिलता है। हुम्बुज श्रमणभक्ति संग्रह में इसे बृहद्दीक्षा विधि के मध्य इतना उल्लेख अवश्य मिलता है, कि लघुदीक्षा के बाद उसी पक्ष में या दूसरे पक्ष में शुभमुहूर्त में महाव्रतारोपण की क्रिया की जाती है। संस्कार का कर्त्ता वर्धमानसूरि के अनुसार यति संबंधी संस्कार निर्ग्रन्थ गुरु द्वारा करवाए जाते है, किन्तु निर्ग्रन्थ गुरु में तो आचार्य, उपाध्याय आदि पदवीधर भी आ सकते हैं तथा सामान्य मुनि भी। ग्रंथकार ने जिस प्रकार इससे पूर्व के संस्कार में विधि कराने वाले गुरु के सम्बन्ध में निर्देश दिया है, उस प्रकार का निर्देश ग्रंथकार ने इस संस्कार में नहीं किया है। सामान्यतः यह संस्कार भी गच्छ की सामाचारी के अनुसार आचार्य, उपाध्याय आदि द्वारा ही करवाया जाता है। वर्तमान में यह संस्कार आचार्य, उपाध्याय आदि पदवीधारी मुनि या बीस वर्ष के संयमपर्याय वाले मुनि द्वारा करवाया जाता है। दिगम्बर-परम्परा ९२ में यह संस्कार योग्य आचरण वाले मुनिराजों द्वारा करवाने का उल्लेख मिलता है। वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में इसकी निम्न विधि प्रस्तुत की है व्यवहारसूत्र, मधुकरमुनि, सूत्र-१०/१७, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, प्रथम संस्करण १६६२. " हुम्बुज श्रमण भक्तिसंग्रह, पृ.-४६६, श्रीसंतकुमार खण्डाका, खण्डाका जैन ज्वैलर्स, हल्दियों का रास्ता, जौहरी बाजार, जयपुर. ४६२ आदिपुराण, जिनसेनाचार्य, अनु.-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-उनचालीसवाँ पृ.-२७६, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २०००. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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