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________________ 214 साध्वी मोक्षरत्ना श्री वह ब्राह्मणों तथा निर्धनों को दान देता है"४३५, परन्तु वर्धमानसूरि ने जिस प्रकार "मित्ती से सव्वभूएसु" के सिद्धान्त के आधार पर साधक को प्राणीमात्र से क्षमायाचना करने का निर्देश दिया है, उस प्रकार का निर्देश वैदिक-परम्परा में नहीं मिलता। वर्धमानसूरि के अनुसार ३६ मृत्यु होने पर तीर्थसंस्कार (अग्निसंस्कार) किया जाता है। इसका उल्लेख करते हुए वर्धमानसूरि ने चारों वर्गों की क्रियाविधि का उल्लेख किया है, जैसे - ब्राह्मणों को सम्पूर्ण सिर एवं दाढ़ी का मुण्डन कराना चाहिए। कुछ लोगों के अनुसार क्षत्रिय एवं वैश्यों को भी ऐसा कराने का विधान है। शूद्र को मुण्डन कराने का निषेध किया है। वैदिक-परम्परा में शान्तिकर्म के अन्तर्गत क्षौरकर्म करवाने का उल्लेख मिलता है, जो अग्निसंस्कार के पश्चात् किया जाता है।४३७ वर्धमानसरि ने शव की संस्कारविधि अपने वर्ण एवं जाति के अनुसार करने का निर्देश दिया है। वर्धमानसूरि के अनुसार शव को सुगंधित द्रव्यों से स्नान कराया जाता है, गन्ध एवं कुंकुम आदि का विलेपन किया जाता है, वस्त्र धारण कराए जाते हैं, आदि। वर्धमानसूरि ने अर्थी किस प्रकार से बनाएं तथा पंचक में मृत्यु होने पर कुशपुत्र कैसे बनाएं तथा उन्हें कैसे रखकर शव का अग्निसंस्कार करें - इसका भी उल्लेख किया है, साथ ही अन्न का भोजन न करने वाले बालक का भूमिसंस्कार करने का निर्देश दिया है। वैदिक-परम्परा के कतिपय आचार्यों के अनुसार शव वयोवृद्ध दासों द्वारा ले जाया जाना चाहिए३८, जबकि अन्य आचार्यों के अनुसार दो बैलों द्वारा ढोए जाने वाली गाड़ी पर लादकर ले जाना चाहिए। इसी प्रकार ब्राह्मण का शव ढोने के लिए शूद्र का उपयोग करने का भी निषेध किया है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि वर्धमानसूरि ने अर्थी का वहन स्वजातिजनों द्वारा करने का निर्देश किया है। ४३५ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-दशम, पृ.-३११, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १६६५ ४३६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-सोलहवाँ, पृ.-७०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १९२२ ४३७ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-दशम, पृ.-३३०, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १६६५ ३६ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-दशम, पृ.-३१३-३१४, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण : १६६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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