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________________ साध्वी मोक्षरत्ना श्री सोम, बुध, शुक्रवार, तिथियों में द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी तथा नक्षत्रों में ज्येष्ठा, मृगशिरा, चित्रा, रेवती, हस्त, स्वाति, पुनर्वसु, पुष्य, धनिष्ठा, शतभिषा, अश्विनी को शुभ माना है, ३३६ जो आचारदिनकर के समरूप ही है। वैदिक - परम्परा में इस संस्कार से सम्बन्धित ज्योतिष विषयक मान्यताओं का उल्लेख गृह्यसूत्र में नहीं मिलता है, परन्तु उत्तरस्मृति - काल में इस सम्बन्ध में चर्चा की गई है, जिसके अनुसार यह संस्कार सूर्य के उत्तरायण में करना चाहिए। राजमार्तण्ड के अनुसार चैत्र और पौष मास तथा सारसंग्रह के अनुसार ३८ ज्येष्ठ और मृगशीर्ष मास इस संस्कार के लिए वर्जित माने गए हैं। साथ ही यह संस्कार दिन में करना चाहिए - ऐसा भी निर्देश है। फिर भी आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने जिस प्रकार ज्योतिष सम्बन्धी निर्देशों को जितने विस्तृत ढंग से एवं स्पष्ट रूप से विवेचित किया है, उस प्रकार का उल्लेख वैदिक-परम्परा के ग्रन्थों में नहीं मिलता है । ३३७ ३३६ 170 आचारदिनकर के अनुसार इस संस्कार के लिए सर्वप्रथम कुलदेवता के स्थान पर ग्राम, पर्वत अथवा घर में शास्त्रोक्त विधि से पौष्टिककर्म किया जाता है, इसके बाद षष्ठी माता को छोड़कर शेष सभी माताओं की पूजा की जाती है । साथ ही कुलाचार के अनुसार कुलदेवता के लिए पकवान बनाए जाते हैं। दिगम्बर-परम्परा में इस संस्कार में देव एवं गुरु की पूजा की जाती है । ३४० वैदिक-परम्परा में यह संस्कार गणेशपूजन, मातृकापूजन, संकल्प, मंगल श्राद्धकर्म एवं ब्रह्मभोज के साथ किया जाता है । ३४१ यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि वर्धमानसूरि ने जिस प्रकार पौष्टिककर्म का निर्देश दिया है, उस प्रकार का उल्लेख दिगम्बर - परम्परा में हमें देखने को नहीं मिलता है। वैदिक परम्परा में यह संस्कार गृह या कुलदेवता के स्थान पर करने का निर्देश अवश्य मिलता है। ३३६ जैन संस्कार विधि, नाथूलाल जैन शास्त्री, अध्याय- २, पृ. १२, श्री वीरनिर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति, गोम्मट गिरी, इन्दौर, पांचवी आवृत्ति २०००. ३३७ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ ( पांचवाँ परिच्छेद), पृ. १२३, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ ३३८ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (पांचवाँ परिच्छेद), पृ. १२३, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ ३३. देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय - षष्ठ ( पांचवाँ परिच्छेद), पृ. १२३, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ ३४० आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक- डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व- अड़तीसवाँ, पृ. २४८, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २०००. ३४१ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (पांचवां परिच्छेद), पृ. १२४, चौखम्भा विद्याभवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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