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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 163 संस्कार का कर्ता - आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक द्वारा करवाया जाता है। वैदिक-परम्परा में कात्यायनसूत्र के मतानुसार यह संस्कार पिता द्वारा किया जाता था, पर कानों का छेदन कौन करे ? इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। मध्यकालीन लेखक श्रीपति ने यह अधिकार सुई बनाने वाले और स्वर्णकार को दिया है।३१७ आधुनिक समय में भी वंश-परम्परा के अनुभव के कारण कर्णवेध प्रायः स्वर्णकार द्वारा ही करवाया जाता है। आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने कर्णवेध की निम्न विधि प्रतिपादित की कर्णवेध-संस्कार की विधि - वर्धमानसूरि के अनुसार निर्दोष वर्ष, मास, तिथि, वार, नक्षत्र होने पर शिशु के रवि-चन्द्रबल में ही कर्णवेध-संस्कार किया जाना चाहिए। कर्णवेध-संस्कार के समय ग्रहों, नक्षत्रों की क्या स्थिति हो, कौनसे वार इस कार्य हेतु शुभ कहे गए हैं, इसकी विस्तृत चर्चा मूल ग्रन्थ में की गई है। ___कर्णवेध-संस्कार हेतु तीसरा, पांचवाँ, सातवाँ वर्ष निर्दोष माना गया है। इसमें भी जिस मास में शिशु का सूर्य बलवान् हो, उस मास में गुरुवार आदि शुभ दिनों में अमृत-मंत्र द्वारा जल को अभिमंत्रित करें तथा उस जल से सधवा स्त्रियाँ शिशु एवं उसकी माता को मंगलगीत गाते हुए स्नान कराएं। तत्पश्चात् गृहस्थ गुरु उसके गृह में पौष्टिककर्म अधिकार के अनुरूप पौष्टिककर्म करे तथा षष्ठीमाता को छोड़कर आठ माताओं की पूजा करे। तत्पश्चात् अपनी कुल- परम्परा के अनुसार योग्य स्थान पर कर्णवेध-संस्कार की क्रिया करे। वहाँ मोदक आदि बनाने का सभी कार्य अपने कुलाचार के अनुसार करें। तदनन्तर बालक को सुखासन में पूर्वाभिमुख बैठाकर उसका कर्णवेध करें। उसके बाद बालक को किस प्रकार से उपाश्रय में ले जाएं, किस प्रकार से वहाँ मण्डली-पूजा करें एवं वासक्षेप लें, इसका भी उल्लेख किया गया है। तत्पश्चात् गृहस्थ गुरु बालक को उसके घर ले जाकर कर्ण-आभरण पहनाए। उसके बाद यतिगुरु को चतुर्विधाहार तथा गृहस्थगुरु को दान-दक्षिणा दें। २१६ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (षष्ठ परिच्छेद), पृ.-१३१, चौखम्भा विद्या भवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ २७ देखे - हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठ (षष्ठ परिच्छेद), पृ.-१३१, चौखम्भा विद्या भवन, पांचवाँ संस्करण १६६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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