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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 143 का उल्लेख मिलता है।२६७ ज्ञाताधर्मकथा में यह संस्कार दूसरे दिन करने के लिए कहा गया है, परन्तु इन आगम-ग्रन्थों में इस संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों का उल्लेख नहीं मिलता है। वर्धमानसूरि के अनुसार यह संस्कार अपने नाम के अनुरूप जन्म के छठवें दिन किया जाता है। दिगम्बर-परम्परा में इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख हमें प्राप्त नहीं होता है। वैदिक-परम्परा में भी देवीपूजन सम्बन्धी यह संस्कार किया जाता है, किन्तु श्वेताम्बर-परम्परा की भाँति जन्म से छठवें दिन नहीं किया जाता है। उसके अनुसार सभी संस्कारों के प्रारम्भ में गणेश और देवी की पूजा की जाती है, फिर भी इससे सम्बन्धित विधि-विधान का वर्णन वहाँ नहीं करके अन्यत्र किया गया है। माताओं की संख्या एवं नामोल्लेख जरूर मिलते हैं, जिनमें से कुछ माताओं के नाम आचारदिनकर में वर्णित माताओं के नाम से मिलते हैं, जैसेब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, चामुण्डा।६८ श्वेताम्बर-परम्परा में यह संस्कार जैन-ब्राह्मण या क्षुल्लक द्वारा करवाया जाता है। वैदिक-परम्परा में यह विधि-विधान कौन करवाए, इस सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है, किन्तु सामान्यतः ब्राह्मण द्वारा ही यह संस्कार करवाया जाता है। आचारदिनकर में वर्धमानसूरि ने इसकी निम्न विधि प्रतिपादित की है - षष्ठी-संस्कार की विधि - वर्धमानसूरि के अनुसार प्रसव के छठवें दिन गुरु प्रसूतिगृह में आकर षष्ठीपूजन की विधि प्रारंभ करे। इस विधि में सूतक का कोई मतलब नहीं है। ___इस संस्कार के लिए सर्वप्रथम सधवा स्त्रियाँ सूतिकागृह के भित्तिभाग एवं भूमिभाग को गोबर से लीपें। तत्पश्चात शुभ वार देखकर सूतिकागृह के भित्तिभाग, भूमिभाग, आदि को खड़ियाँ मिट्टी से सफेद करके सुशोभित करे। तदनन्तर सधवा स्त्रियाँ कुंकुम, हिंगुल, आदि लाल वर्णों (रंगों) से आठ खड़ी हुई, आठ बैठी हुई एवं आठ लेटी हुई माताओं का आलेखन करें। कहीं-कहीं कुल एवं गुरु-परम्परा के अनुसार छ:-छ: माताओं के आलेखन का भी विधान है। उसके बाद सधवा स्त्रियों द्वारा मंगलगीत गाए जाने २६७ (अ) ज्ञाताधर्मकथा सू.-१/६३ (ब) औपपातिक सू.-१०५ (स) राजप्रश्नीय सू.-२८० (सं.-मधुकरमुनि) . (द) कल्पसूत्र सू.-१०१ (सं.-विनयसागर)। - देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८७, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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