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________________ 114 साध्वी मोक्षरला श्री को भी वस्त्र, स्वर्णमुद्रा (द्रव्य), आभरण, आदि का दान दे। गृहस्थ-गुरु उन दोनों को आशीर्वाद दे। इसके बाद मंत्र द्वारा ग्रन्थि-विमोचन करके उपाश्रय में जाकर दंपत्ति साधुजनों को गुरुवंदन के पाठ से वंदन करे एवं उनको निर्दोष आहार, वस्त्र, पात्र, आदि का दान दे। आचारदिनकर में जैन-परम्परा अनुसार यह गर्भाधान-संस्कार की विधि बताई है। उसके बाद अपने कुलाचार के अनुसार कुलदेवता, गृहदेवता एवं नगरदेवता की पूजा करे। दिगम्बर-परम्परा के “आदिपुराण"८६ नामक ग्रन्थ में इस संस्कार की विधि को बताते हुए कहा गया है - चतुर्थ स्नान के द्वारा शुद्ध हुई रजस्वला पत्नी को आगे कर गर्भाधान के पूर्व अरिहंतदेव की पूजा द्वारा मंत्रपूर्वक यह संस्कार किया जाता है। इस क्रिया (संस्कार) की पूजा में जिनेन्द्र परमात्मा की दाहिनी ओर तीन चक्र, बाईं और तीन छत्र और सामने तीन पवित्र अग्नियों की स्थापना की जाती है। __ अरिहन्तदेव की पूजा करने के पश्चात् शेष बचे हुए पवित्र द्रव्य से पुत्र उत्पन्न होने की इच्छा कर (पुत्रप्राप्ति की इच्छा से) मंत्रपूर्वक उन तीन अग्नियों में आहुति दी जाती है। इस प्रकार गर्भाधानक्रिया को विधिपूर्वक करने के पश्चात् स्त्री और पुरुष- दोनों विषयानुराग के बिना मात्र सन्तान की प्राप्ति के लिए समागम करते हैं। दिगम्बर-परम्परा में गर्भाधान की यही विधि बताई गई है। वैदिक-परम्परा में विविध गृह्यसूत्रों में इसकी भिन्न-भिन्न क्रियाविधि बताई गई है। अथर्ववेद, बृहदारण्यकोपनिषद्', आश्वलायनगृह्यसूत्र, शंखायनगृह्यसूत्र, पारस्करगृह्यसूत्र,८३ आदि में भी इस संस्कार की विधि मिलती है। शंखायनगृह्यसूत्र में इसका वर्णन इस प्रकार मिलता है- विवाह की तीन रात व्यतीत हो जाने पर चौथी रात्रि को पति अग्नि में पके हुए भोजन की आठ आहुतियाँ देता है। इसके पश्चात् अध्यण्डा नामक वृक्ष की जड़ को कूटकर उसके ९६ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनुवादक - डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२४५, भारतीय ज्ञानपीठ, __ सातवाँ संस्करण : २००० १० देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (भाग प्रथम) पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८१, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण : १९८० *" बृहदारण्यकोपनिषद्, भाष्यकार भगवान शंकर, अध्याय-६/४/२१, पृ.-१३५७, गोविन्द भवन कार्यालय, गीता प्रेस, गोरखपुर २०५२ १६२ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (भाग प्रथम) पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८१, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८०। १६३ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (भाग प्रथम), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८१, उत्तरप्रदेश हिन्दी __ संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण : १९८० १६४ देखे - धर्मशास्त्र का इतिहास, (भाग प्रथम), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८१, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ, तृतीय संस्करण : १९८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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