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________________ 106 साध्वी मोक्षरला श्री निर्दिष्ट सामान्य संस्कारों के अन्तर्भूत ही है। दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में प्रायश्चित्तविधि का उल्लेख मिलता है, किन्तु वहाँ इस विधि को भी संस्कार के नाम से अभिहित नहीं किया गया है। आवश्यकविधि - जैन-परम्परा में षट-आवश्यक माने गए हैं - (१) सामायिक (२) चतुर्विंशतिस्तव (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कायोत्सर्ग एवं (६) प्रत्याख्यान। इन षट्-आवश्यकों की क्रिया-विधि का इस प्रकरण में उल्लेख किया गया है। दिगम्बर-परम्परा में भी इन षट्-आवश्यकों की अवधारणा को स्वीकार किया गया है। इस परम्परा में हमें इस प्रकार के विधि-विधान का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, किन्तु उनके संध्याकर्म में इसके कुछ अंश देखे जाते हैं। तपविधि - इस प्रकरण में कर्मों की निर्जरा के हेतुभूत तपविधि का वर्णन हुआ है। वर्धमानसूरि ने इसे भी अनिवार्य कर्म के रूप में माना है, जबकि दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में इसे संस्कार का रूप नहीं दिया गया है। पदारोपणविधि - इस विधि में विभिन्न पदों पर योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति के साथ-साथ मुद्रा-विधि एवं नामकरण-विधि का भी उल्लेख हुआ है। दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में इससे संबंधित कुछ विधि-विधानों का उल्लेख अवश्य मिलता है। इस प्रकार तीनों ही परम्पराओं में संस्कार सम्बन्धी अवधारणाओं में कुछ समानता दृष्टिगत होती है, तो कुछ विभिन्नताएँ भी दृष्टिगत होती हैं। यहाँ हमने उनका संक्षिप्त विवेचन ही प्रस्तुत किया है, इनका विस्तृत विवेचन हम चतुर्थ, पंचम एवं षष्ठ अध्याय में करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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