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________________ अव्यय एवं उपसर्ग ] भाग १ : व्याकरण [ ५१ परिवर्तन से कई रूपों में मिलते हैं। जैसे-प (प्र), परा (परा), ओ-अव (अप), सं (सम्); अणु अनु (अनु), ओ अव (अव), नि नी ओ (निर्), दुदु (दुर्', अहि अभि (अभि), वि (वि), अहि अधि (अधि), सु सू (सु), उ (उत्) अइ अति (अति), णि नि (नि), पडि पइ परि (प्रति), परि पलि (परि), पि वि अवि (अपि), ऊ ओ उव (उप), आ (आङ) । नोट--अप, अव, और उप के स्थान पर 'ओ' विकल्प से होता है।' उप के स्थान पर 'ऊ' भी होता है ।२ अपि के अ का लोप भी विकल्प से होता है । स्वर के बाद में आने पर 'पि' को 'वि' हो जाता है। जैसे--केण वि, केणाधि तं पि, तमवि । 'माल्य' शब्द के साथ निर' उपसर्ग को 'ओ' तथा 'स्पा' धातु के साथ 'प्रति' उपसर्ग को 'परि' आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे-निर्माल्यम् > ओमालं, निम्मल्लं । प्रतिष्ठा >परिट्ठा, पइट्ठा । अर्थ और प्रयोग (१) प (प्रकर्ष)-पभासेड (प्रभाषते)। (२) परा (विपरीत)-पराजिअइ (पराजयते)। (३) ओ, अव (दूर)-ओसरइ, अवसरइ (अपसरति)। (४) सं (अच्छी तरह)--संखिवइ (संक्षिपति)। (५) अणु, अनु (पीछे या साथ)-अणुगमइ (अनुगच्छति), अनुमई अनुमतिः)। (६) ओ, अव (नीचे, दूर, अभाव)--ओआसो, अवयासो (अवकाशः). ओअरइ (अवतरति)। (७) ओ, नि, नी ( निषेध, बाहर, दूर )-निग्गओ (निर्गतः ), नीसहो (निस्सहः), ओमालं, निम्मल्लं (निर्माल्यम्)। १. अवापोते । हे० ८.१.१७२. २. ऊच्चोपे । हे० ८.१.१७३. ३. पदादपेर्वा । हे० ८.१.४१. ४. मोत्परीमाल्यस्थो। हे० ८.१.३८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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