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________________ २०२] प्राकृत-दीपिका [जैन महाराष्ट्री ३६. सो भणइ अज्ज दियहो, विभावसू बहुलअट्टमी य चेत्तस्स । समणो च्चिय नक्खत्तं बम्भा उण भण्णए जोगो ।। १०७ ।। ३७. सुपुरिस ! सुभो मुहत्ती. उदओ मीणस्स आसि तव्वेलं । ___सव्वे गहाऽणुकूला, विद्धिट्ठाणेसु वट्टन्ति ।। ११० ।। ३८ एवं महानिमित्तं, भणियं बल-भोग-रज्ज-मामिद्धी। भोत्तूण एस बालो, सिद्धि सुहं चेव पाविहिई ॥ १११ ॥ ३९. नक्खत्तपाढयं पि य, संपूएऊण तत्थ पडिसूरो। तो भणइ भाइणेज्जी, हणुरुहनयरं पगच्छामो॥ ११२ ।। ४०. तो निग्गया गृहाओ, ठाणनिवासि सुरं खमावेउं । ___वच्चइ नहङ्गणेणं, वरकणयविमाणमारूढा ।। ११३ ॥ ३६. सो भणात अद्य दिवसो विभावसा: (रविवार) कृष्णाष्टमी व चैत्रस्य । श्रमण एव नक्षत्रं ब्राह्मः पुनो भण्यते योगः ।। ३७. सुपुरुष ! शुभो मुहूर्त उदयो मीनस्य आसीत् तद्वेलायाम् । सर्वे ग्रहाऽनुकूला वृद्धिस्थानेषु वर्तन्ते ॥ ३८. एवं महानिमित्तं भणति बलभोगराज्यसमृद्धिम् । भक्त्वां एष बाल: सिद्धिसुखमेव प्राप्स्यति ।। ३९. नक्षत्रपाठकमपि च सम्पूज्य तत्र प्रतिसूर्यः । ततो भणति भागिनेयीं हनुरुहनगरं प्रगच्छामः ॥ ४०. ततो निर्गता गृहाया स्थाननिवासिनं सूरै क्षमापयितुम् । गच्छति नभाङ्गणेन वरकणकविम'नमारूढा ।। ३६. उसने कहा कि आज रविवार का दिन तथा चैत्रमास की कृष्णाष्टमी है । श्रवण नक्षत्र और ब्राह्म नाम का योग कहा है । ३७. हे सुपुरुष ! उस समय शुभ मुहर्त था और मीन का उदय था । सभी भनुकूल ग्रह वृद्धिस्थान में हैं। ३८. यह महानिमित्त कहता है कि बल, भोग, राज्य एवं समृद्धि का उपभोग करके यह बालक मोक्षसुख प्राप्त करेगा। ३९. वहाँ प्रतिसूर्य ने नक्षत्रपाठक (ज्योतिषी) का सम्मान करके अपनी भांजी से कहा कि हम हनुरुह नगर को चलें। ४०. बाद में उस स्थान में रहनेवाले देव से क्षमायाचना करके वह गुफा से बाहर निकली और सोने के बने हुए उत्तम विमान में आरूढ़ होकर चली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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