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________________ सम्प्रदान एवं अपारान कारक ] भाग २ अनुवाद [१६९ तथा इनकी समानार्थक धातुओं के योग में जिससे जुगुप्सा आदि की जाए, उसमें । (ग) जिससे भय हो या रक्षा की जाए ( तृतीया, चतुर्थी और षष्ठी भी)। (घ) परा+जि धातु के योग में जो असह्य हो। (ङ) जन (पैदा होना) धातु के कर्ता के मूल कारण में अर्थात् जिससे या जहां से कोई वस्तु पैदा हो। अभ्यास (क) प्राकृत में अनुवाद कीजिए-सर्वज्ञ (सव्वष्णु) के लिए नमस्कार हो । यह भोजन मजदूर (समिय) के लिए है। ग्वाला (गोव) उन स्त्रियों के लिए दूध देता है। योगी (जोगी) प्राणियों के लिए उपदेश देते हैं । बालिका आभूषण के लिए रोती है। गुरु छात्रों के लिए उपदेश देते हैं । बहू के लिए करधनी ( मेहला ) अच्छी लगती है। क्या तुमने श्याम से पाँच रुपया उधार लिए ? तुम उस पर क्यों क्रोधित होते हो? क्या तुम दोनों मुझसे घृणा करते हो ? ओष्ठ ( ओट्ठ) से खून निकलता है। वह मुझसे क्यों डरता है ? श्याम से देवदत्त पराजित होता है। घड़ा से पानी गिरता है । गाँव से कौन आया है ? मैं उससे पुस्तकें लेता हूँ। भिखारी उन स्त्रियों से भीख ( भिक्खा ) माँगता है। इस फूल से सुगन्ध आती है। पिजड़े ( पंजर ) से पक्षी उड़ता है। क्या वह तालाब से नहीं निकला ? (ख) हिन्दी में अनुवाद कीजिए-इदं चित्तं (चित्र) तुज्झ अत्थि । इमाणि सत्थाणि काण सन्ति ? छत्ता कुलवइणो नमंति । अम्हे साहूण नमामो णिच्चं । बणिओ जोगिणो भोअणं दाइ । किसाणो बणिअस्स सयं धारइ । छत्ताण सुत्थि । गुरुणो छत्ताण कुज्झहिंति । जुवईओ णेउराण (नपुरों के लिए ) कन्दंति । बालाण मालाओ रोअंते । चडहा (चिड़िया ) पुष्फस्स सिहइ (चाहना)। गोवस्स पुत्तो रुकवत्तो पडइ। मुक्खो सुधित्तो बीहइ । सा पुरिसत्तो चम्म गिण्हइ। गामत्तो पुरिसो आगच्छइ । पाडलाहिंतो (गुलाब) सुयंधो आयइ। साहु पावत्तो विरमइ । बालो सप्पत्तो बीहइ । मूसिओ छिद्दयत्तो णिस्सरइ । मोहत्तो लोहो अहिजाअइ । अहं सट्टत्तो ( शठता ) दुगुच्छामि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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