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क्रियातिपत्ति ]
भाग २ : अनुवाद
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पाठ १७ कर्तृ, कर्म एवं करण कारक उदाहरण वाक्य [ प्रथमा, द्वितीया एवं तृतीया के विशेष प्रयोग ]
१. उपाध्याय शिष्य को क्षमा करता हैउवज्झाओ सीसं खमइ । २. राजा कवियों को पालता है - भूवई (निवो) कविणो पालइ । ३. हे राम ! यहाँ चन्दन, हल्दी और नमक हैं - हे राम ! अत्थ चंदणं;
हलिद्दा लोणो य अस्थि । ४. आचार्य के द्वारा ग्रन्थ लिखे जाते हैं - मायरियेण गंथाणि लिहिज्जति । ५. हरि वैकुण्ठ में रहते हैं-हरी वइउठं अहिचिट्ठइ । ६. गांव के चारों ओर पानी है गाम अहिओ जलं अस्थि । ७. वह जल से मुह धोता है - सो जलेण मुहं पच्छालइ। ८. पुत्र उड़द के खेत में घोड़े को बाँधता है = पुत्तो मासेसु अस्सं बंधइ । ९. राम बालक से मार्ग पूछता है- रामो बालअं पहं पुच्छ।। १०. विद्वानों को कौन नहीं जानता है - वुहा को ण जाणइ ? ११. पुत्री माता को नमस्कार करती है-धूआ मा नमइ । १२. गुरु शिष्य के साथ भोजन करता है - गुरु सीसेण सह भुजइ । १३. वह सास के विना नहीं रहती है - सुण्हा सासूए विणा ण वसइ । १४. राम के बाण से बाली मारा गया-रामेण बाणेण हओ बाली। १५. यह बालक प्रकृति से मनोहर है-इमो बालो पइईअ (प्रकृत्या) चारू। १६. जटाओं से यह तपस्वी लगता है जडाहि तावसो इमो होइ । १७. पुण्य से भगवान् के दर्शन हुए-पुण्णेण दिट्ठो भगवओ।
१८. कान से बहरा आदमी जाता है= कण्णेण बहिरो जरो गच्छइ । नियम४१. निम्नोक्त स्थलों में प्रथमा विभक्ति होती है
(क) कर्तृवाच्य के कर्ता में । (ख) कर्मवाच्य के कर्म में। (ग) वस्तु आदि के नाम निर्देश मात्र में। (घ) सम्बोधन में ।
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