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________________ विविध प्राकृत भाषायें ] ष० सु, स्सु, हो, लोप स० इ, ए सं० उ, लोप हं, लोप हिं हो, लोप एकवचन प्र० पु० इ, ए म० पु० हि [सि ] उ० पु० जं (मि] हूं [मु.] बहुवचन fg [fa] हु ह] भाग १ : व्याकरण देव, देवसुदेवस्सु देवे, देवि देव, देव Jain Education International लिङ्ग-भेद और शब्द-भेद से शब्द प्रत्ययों में अन्तर पाया जाता है । H (१०) क्रियारूपों के वर्तमान काल के प्रत्यय तथा 'कर' धातु के रूप- प्रत्यय-चिह्न 'कर' धातु के रूप एकवचन करइ, करए करहि, करसि करउं, करिमि [ १३७ देव देवहं, देवहि देवहो, देव For Private & Personal Use Only बहुवचन करहिं, करन्ति (११) ' तव्यत्' > इएव्वजं, एव्वउं, एवा । जैसे -- कर्तव्यम् > करिएव्वउं करेव्व करेवा | करहु, करह करहुं करिमु (१२) क्त्वा > इ, उ, इवि, अवि, एप्पि, एविणु, एवि, एविण ! जैसेकृत्वा > करि करिउ करिवि करवि करेपि करेपिणु करेवि करेविणु । 1 (१३) तुमुन् > एवं अण, अणहं, अणहिं, एप्पिं, एप्पिणु, एवि, एविणु । जैसे --तुम् > करेवं करण करणहं करहिं करेपि करेपिणु करेवि करेविणु । (१४) शीलाद्यर्थक तृच् > अणअ । जैसे --कर्तृ > करणअ । मारयित > मारणअ । (१५) त्व, तल > पण । जैसे -- देवत्व > देवपण महत्त्व > वड्डप्पण | - www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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