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________________ विविध प्राकृत भाषायें ] भाग १ : व्याकरण [ १२५ (७) ट्ट, ष्ट >स्ट-पट्ट: >पस्टे, कोष्ठागारम् > कोस्टागालं, भट्टारिका > भस्टालिका, भट्टिनी >भस्टिणी, सुष्टुकृतम् > शुस्टुकदं । (८) च्छ >श्च -पच्छति >पुश्चदि, गच्छ गश्च, पिच्छिल: >पिश्चिले ( पंख वाला ), उच्छलात > उश्चल दि ( उछलता) है। (९) क्ष>(जिह्वामूलीय)-अनादि क्ष के स्थान परक होता है । जैसे-राक्षसः >ल कशे ( लस्कशे ), यक्ष:> य के। प्रेक्ष और आचक्ष में 'स्क' होता है । जैसे-प्रेक्षते >प्रेस्कदि, आचक्षते >आचस्कदि । ... (१०) आदेश होते हैं-हृदये >हडक्के, अहम् >हगे, वयम् >हगे, शृगाल: > शिआले शिआलके, तिष्ठ>चिस्ठ । (११) 'क्त' प्रत्यय का 'ड' तथा 'क्त्वा' प्रत्यय का 'दाणि' होता है। जैसेमृतः >मडे, गतः >गडे, कृत्वा करिदाणि, सोढ्वा>शहिदाणि । (१२) षष्ठी एकवचन और बहुवचन में क्रमश: अकारान्त शब्दों से आह (डाह) तथा आहे ( डाहँ) प्रत्यय विकल्प से होते हैं । इकारान्त और उकारान्त में 'ह' और 'हँ' प्रत्यय होते हैं। जैसे--वीरस्य >वीलाह वीलस्स । वीराणाम् >वीलाहँ वीलाण वीलाणं । अह न ईदशः कर्मण: कारी हगे न एलिशाह कम्माह काली (मैं इस प्रकार के कर्म को करने वाला नहीं हूँ) । सज्जनानाम् > शय्यणाहं। भानो:>भाणुह, भानूनाम् >भाणुहँ, भाणूण । शेष शौरसेनी के समान समझना। जैसेविभक्ति चिह्न अकारान्त 'वीर' शब्द के रूप एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन ए आ प्र० वीले वीला अनुस्वार आ द्वि० वी वीला ण, णं हि, हिं, हिँ तृ० वीलेण,-णं वीलेहि,-हिं, हिँ आह, स्स आहँ, ण, णं च० वीलाह, वीलस्स वीलाहँ, वोलाण,-णं आदो, आदु त्तो, ओ, उ, हि, प० वीलादो, दु वीलतो,वोलाशुतो, हितो, सुतो वीलाहितो आह, स्स आहँ, ण, णं. ष० वीलाह,वीलस्स वीलाह,वीलाण,-णं सि, म्मि शु, शु स० वीलंसि,वीलम्मि दीलेशु,-शु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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