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________________ ११६ ] प्राकृत-दीपिका [ चतुर्दश अध्याय सेतुबन्ध (प्रवरसेनकृत ), गाथासप्तशती ( हालकृत ), गउउवहो ( वाक्पतिकृत), कुमारपाल चरित ( हेमचन्द्रकृत ) आदि काव्यग्रन्थ महाराष्ट्री प्राकृत में ही लिखे गये हैं। गीति-साहित्य ( गाथा ) में महाराष्ट्री प्राकृत ने खब प्रसिद्धि प्राप्त की है। भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में जो 'दाक्षिणात्या' भाषा का उल्लेख किया है वह संभवतः महाराष्ट्री प्राकृत ही है, परन्तु मार्कण्डेय के प्राकृतसर्वस्व से ज्ञात होता है कि दाक्षिणात्या और महाराष्ट्री दोनों अलग-अलग भाषायें थीं। डॉ० हार्नलि के मतानुसार महाराष्ट्री भापा का अर्थ है 'विशाल राष्ट्र की भाषा' न कि महाराष्ट्र देश में उत्पन्न हुई भाषा, किन्तु आचायें दण्डी ने इसे महाराष्ट्र देश की ही भापा कहा है। महाराष्ट्री भाषा में रचित जो साहित्य इस समय उपलब्ध है उसमें ई० सन के बाद के ही उदाहरण पाये जाते हैं । प्राचीन महाराष्ट्री का कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है। जैन अर्धमागधी और जैन मह राष्ट्री में प्राचीन महाराष्ट्री भाषा की कुछ प्रवृत्तियाँ सुरक्षित हैं । प्राचीन महाराष्ट्री में परवर्ती महाराष्ट्री की तरह व्यञ्जनवर्ण के लोप की प्रचुरता नहीं थी। चण्ड के. व्याकरण से इसकी पुष्टि होती है। भरतमुनि ने नाटयशास्त्र में 'आवाती' भाषा का प्रयोग नाटकों में धूर्त पात्रों के लिए तथा 'वाह्लीकी' भाषा का प्रयोग जुआड़ियों के लिए बतलाया है। मार्कण्डेय के प्राकृतसर्वस्व से ज्ञात होता है कि ये दोनों भाषायें महाराष्ट्री के ही अन्तर्गत रही हैं ( 'आवन्ती स्यान्महाराष्ट्रीशौरसेन्योस्तु संकरात्' । 'आवन्त्यामेव वाह्नीकी किन्तु रस्यात्र लो भवेत्' ) । इस भाषा की प्रमुख विशेषताओं का विचार पहले किया जा चुका है। (२) जैन महाराष्ट्री ( प्राचीन महाराष्ट्री) काव्य और नाटकों की भाषा से बहुत अंशों में साम्य रखने वाली जैन महाराष्ट्री का यद्यपि प्राचीन वैयाकरणों ने स्पष्टतः उल्लेख नहीं किया है परन्तु आधुनिक पाश्चात्य विद्वानों ने इसकी कुछ भाषागत विशेषताओं को ध्यान में रखकर 'जैन महाराष्ट्री' नाम दिया है। जैन महाराष्ट्री की मूल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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