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________________ १०० ] प्राकृत-दीपिका (१) नियम -- (क) एक शब्द के रूप सभी विभक्तियों में एवं सभी लिङ्गों में अकारान्त शब्दों के समान चलेंगे । विशेष्य के अनुसार उनका लिङ्ग बदलेगा । (२) संख्यायें १. -- १. एगो, एगा, एगं ( एक्को, एओ) २. दोण्णि, दुवे (वेण्णि, वे, दो) ३. तिण्णि ४. बउरो, बत्तारो, चत्तारि संख्यावाचक शब्दरूप (ख) दो से अट्ठारह ( २ - १८ ) तक के संख्या शब्दों के रूप बहुवचन में ही होते हैं तथा तीनों लिङ्गों में समान होते हैं । 'उभ' और 'कइ' (कति) शब्दों के भी रूप बहुवचन में ही होते हैं । अठारह के बाद की संख्याओं के रूप एकवचन और बहुवचन में बनते हैं । ५. पंच ६. छ (ग) उन्नीस से अट्ठावन, ( १९ - ५८ ) तक के संख्या शब्दों के रूप आकारान्त स्त्रीलिङ्ग 'बाला' के समान बनते हैं तथा तीनों लिङ्गों में समान होते हैं । (घ) उन्सठ से निन्यानबे ( ५९ - ९९ ) तक के संख्या शब्दों के रूप इकारान्त स्त्रीलिङ्ग 'जुवइ' के समान बनते हैं तथा तीनों लिङ्गों में समान होते हैं । (ङ) सौ सय (१००) आदि संख्या शब्दों के रूप अकारान्त नपुंसकलिङ्ग के समान बनते हैं । Jain Education International [ एकादश अध्याय ७. सत्त ८. अट्ठ ९. णव १०. दह, दस ११. एगारह १२. वारह १३. तेरह १४. चउदह १५. पण्ण रह For Private & Personal Use Only १६. सोलह, छद्दह १७. सत्तरह १८. अट्ठारह १९. एगूणवीसा २०. वीसा, वीसइ १. संख्याओं के अन्य वैकल्पिक रूप भी मिलते हैं । 'न' के स्थान पर 'ण' तथा 'प' के स्थान पर 'व' भी मिलता है । २१. एगवीसा २२. दुवीसा २३. तेवीसा २४. चवीसा www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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