SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६] प्राकृत-दीपिका [ एकादश अध्याय बीआ म् >अनुस्वार णो, लोप (लोप होने पर दीर्घ) तइआ णा हि, हिं, हिं ( 'इ, उ' को दीर्घ ) चउत्थी णो, स्स ण, गं ( 'इ, उ' को दीर्घ) पंचमी णो, तो, ओ, उ, हिन्तो तो, ओ, उ, हिन्तो, सुन्तो ('ओ, उ, हिन्तो' के होने (दीर्घादि कार्य अकारान्तवत् ) पर दीर्घ) णो, स्स ण, णं ( दीर्ष ) सत्तमी म्मि, अंसि सु, सु(दीर्थ) संबोहण लोप ( दीर्घ विकल्प से ) प्रथमा बहुवचमवत् [विशेष १. इकारान्त और उकारान्त के शब्दरूपों में अकारान्त के प्रत्ययों से निम्न अन्तर हैं (क) प्रथमा एकवचन में प्रत्यय का लोप तथा अन्तिम स्वर को दीर्घ । (ख) प्रथमा तथा संबोधन के बहुवचन में ‘णो, अउ, अओ' होते हैं । 'अउ, अओ' होने पर अंतिम स्वर का लोप भी होगा। प्रत्यय का लोप होने पर अंतिम स्वर को दीर्घ होगा। (ग) तृतीया एकवचन में 'णा' होगा। (घ) चतुर्थी, पंचमी और षष्ठी एकवचन में अतिरिक्त ‘णो' प्रत्यय होगा। (ङ) सप्तमी एकवचन में 'ए' के स्थान पर 'अंसि' होगा। (च) सम्बोधन के एकवचन में प्रत्यय का लोप तथा शब्द के अंतिम स्वर को विकल्प से दीर्घ । ईकारान्त और ऊकारान्त शब्दों के स्वर को ह्रस्व । (छ) पंचमी के एकवचन और बहुवचन में 'हि' नहीं होता। २. उकारान्त पुं० शब्दों में 'ई के स्थान पर 'ऊ' होगा, शेष इकारान्त के ही प्रत्यय होंगे। प्रथमा बहुवचन में 'अवो' अतिरिक्त प्रत्यय भी होता है । ३. दीर्घ ईकारान्त और ऊकारान्त के रूप इकारान्त और उकारान्त के समान ही चलते हैं।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy