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अष्टकप्रकरणम्
दृष्टोऽसंकल्पितस्यापि लाभ एवमसम्भवः । नोक्त इत्याप्ततासिद्धिर्यतिधर्मोऽतिदुष्करः ॥ ८ ॥
नवजात शिशु की माँ के लिए या रोगी इत्यादि के लिए निर्मित पिण्ड साधुओं की अपेक्षा से अनौद्देशिक पिण्ड होता है और उसकी प्राप्ति सम्भव है। अत: सिद्ध है कि सर्वज्ञ ने असम्भावित पिण्ड का उपदेश नहीं दिया है। इस प्रकार उनकी सर्वज्ञता निर्दोष सिद्ध होती है। फिर भी ऐसे अनौद्देशिक ( असङ्कल्पित ) पिण्ड की प्राप्ति विरल होने से यतिधर्म को दुष्कर कहा गया है ।। ८ ।।
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