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________________ प्रस्तावना ५५ घडा फोड डाला । कथाओं के इन वर्णनों में निष्कलंक की कथा का तो अन्यत्र से समर्थन नही होता । किन्तु हिमशीतल की सभा में वाद का चर्णन मल्लिषेण-प्रशस्ति में प्राप्त होता है - साहसतुंग (राष्टकूट राजा दन्तिदुर्ग) की सभा में अकलंक ने निम्न श्लोक कहे थे ऐसा इस में वर्णन है - राजन् साहसतुंग सन्ति बहवः श्वेतातपत्रा नृपाः किन्तु त्वत्सदृशा रणे विजयिनस्त्यागोन्नता दुर्लभाः । तद्वत् सन्ति बुधा न सन्ति कवयो वादीश्वरा वाग्मिनो नानाशास्त्रविचारचातुरधियः काले कलौ मद्विधाः ।। नाहंकारवशीकृतेन मनसा न द्वेषिणा केवलं नैरात्म्यं प्रतिपद्य नश्यति जने कारुण्यबुद्ध्या मया । राज्ञः श्रीहिमशीतलस्य सदसि प्रायो विदग्धात्मनो बौद्धौघान् सकलान् विजित्य स घटः पादेन विस्फोटितः॥ राजा साहसतुंग तथा शुभतुंग (कृष्ण प्रथम ) के समकालीन होने से अकलंक का समय आठवीं सदी का मध्य – उत्तरार्ध ( अनुमानतः सन ७२०-७८०) निश्चित होता है। अकलंकचरित में बौद्धों के साथ उन के वाद का समय विक्रमांकशकाब्द ७०० दिया है, यह शक ७०० = सन ७७८ हो सकता है। पहले सन ६७६ में लिखित निशीथचूर्णि में सिद्धिविनिश्चय का उल्लेख देखकर अकलंक का समय सातवीं सदी का मध्य माना गया था किन्तु यह सिद्धिविनिश्चय शिवार्य की रचना है - अकलंककृत सिद्धिविनिश्चय से भिन्न है यह स्पष्ट हो चुका है। अतः उपर्युक्त शक ७०० को विक्रम संवत् ७०० = सन ६४३ मानने का कोई कारण नही है । हरिभद्र के ग्रन्थों में अकलंकन्याय शब्द का प्रयोग देखकर अकलंक को हरिभद्र से पूर्ववर्ती - ७ वीं १) जैन शिलालेख संग्रह भा.१ पृ.१०१. २) विक्रमांकशकाब्दीयशतसप्तप्रमाजुषि। कालेऽकलंकय तिनो बैबैर्वादो महानभूत् ॥ (सिद्धिविनिश्चय टीका प्रस्तावना पृ. ४५) ३) पहले दिया हुआ शिवार्य का परिचय देखिए । ४) अनेकान्तजयपताका पृ. २७५ “ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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