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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः जीवसिद्धिविधायीह कृतयुक्त्यनुशासनम् । वचः समन्तभद्रस्य वीरस्येव विज़म्भते ।। यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है । दसवीं सदी में अनन्तकीर्ति आचार्य ने जीवसिद्धिनिबन्धन लिखा था वह सम्भवतः इसी का विवरण था । तत्त्वार्थभाष्य-समन्तभद्र ने तत्त्वार्थसूत्र पर गन्धह स्ति महाभाष्य नामक टीका लिखी थी ऐसा कुछ लेखकों ने कहा है । इस भाष्य का विस्तार ८४००० अथवा ९६००० श्लोकों जितना कहा गया है। आप्तमीमांसा इस महाभाष्य के मंगलाचरण के रूप में लिखी गई थी ऐसा भी विधान मिलता है। यह महाभाष्य उपलब्ध नही है। आप्तमीमांसा को रचना एक स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसी है - आचार्य ने उस में तत्त्वार्थ का कोई उल्लेख नही किया है। अतः आप्तमीमांसा और गन्धहस्ति महाभाष्य का सम्बन्ध सन्देहास्पद है। इसी पर से पं. मुख्तार ने अनुमान किया था कि गन्धहस्ति महाभाष्य की रचना हुई थी या नही यही सन्दिग्ध है-यह केवल कल्पना ही हो सकती है। किन्तु भाष्य के सभी उल्लेख काल्पनिक होना कठिन है। अतः यही कहना उचित होगा कि समन्तभद्र की यह रचना इस समय उपलब्ध नही है। षट्खण्डागमटीका-इन्द्रनन्दि ने श्रुतावतार (श्लो. १६७६९) में जो वर्णन दिया है उस से पता चलता है कि समन्तभद्रने षटखण्डागम के पहले पांच खण्डों पर अति सुन्दर व मृदु संस्कृत भाषा में ४८००० श्लोकों जितने विस्तार की एक टीका लिखी थी। वे दूसरे सिद्धान्तग्रन्थ कषायप्राभृत पर भी टीका लिखना चाहते थे किन्तु साधनशुद्धि के अभाव में लिख नही सके। षट्खण्डागमटीका भी उपलब्ध नही है। १) इसी निबन्ध का अनन्तकीर्ति विषयक परिच्छेद देखिए । २) चामुण्डराय (१० वी सदी), गुणवर्मा (१२ वी सदी), समन्तभद्र ( द्वितीय ), तथा धर्मभूषण (१४ वी सदी) ने ऐसे उल्लेख किये हैं। विस्तार के लिये देखिएतत्त्वार्थसूत्र की भास्करनन्दिकृत वृत्ति की प्रस्तावना में. पं. शान्तिराजशास्त्री का समन्तभद्रविषयक विवरण (पृ. ३९ और आगे). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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