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________________ प्रस्तावना 86 की कल्पना, मीमांसकों का पशुबलि समर्थन आदि का समावेश होता है । इस के साथ ही जैन दर्शन का समन्वयप्रधान दृष्टिकोण भी आचार्य ने स्पष्ट किया है- वीर भगवान का तीर्थ 'सर्वोदय तीर्थ' है यह सिद्ध किया है ।युक्तयनुशासन पर विद्यानन्द ने विस्तृत संस्कृत टीका लिखी है। [प्रकाशन-१ मूल-सनातन जैन ग्रन्थमाला का प्रथम गुच्छक १९०५, बनारस; २ विद्यानन्दकृत टीका सहित-सं. पं. इंद्रलाल व श्रीलाल, माणिकचन्द्र ग्रंथमाला, १९२०, बम्बई; ३ मल व हिन्दी स्पष्टीकरण-पं. जुगली किशोर मुख्तार, वीरसेवामंदिर, दिल्ली । ] ___ स्वयम्भूस्तोत्र-१४३ पद्यों में चौबीस तीर्थंकरों के गुणों का इस में स्तवन किया है। इस का प्रारम्भ स्वयम्भू शब्द से होता है अतः इसे स्वयम्भस्तोत्र कहा जाता है । इसी नाम के उत्तरवर्ती छोटे स्तोत्र से भिन्नता बतलाने के लिए इसे बृहतस्वयम्भस्तोत्र भी कहा जाता है । वैसे यह रचना ललित पदरचना, मधुर शब्दप्रयोग एवं उपमादि अलंकारों के मनोहर उपयोग के लिए प्रसिद्ध है-ललित काव्य का एक सुन्दर उदाहरण है-तथापि आचार्य की स्वाभाविक रुचि के कारण इस में कोई ३० श्लोकों में मुख्यतः सुमति, पुष्पदन्त, विमल तथा अर तीर्थंकरों की स्तुति में विविध प्रकारों से अनेकान्तवाद का समर्थन भी प्रस्तुत किया है । इसीलिए उत्तरकालीन दार्शनिक स्तुतियों के आदर्श के रूप में यह स्तोत्र प्रसिद्ध हुआ है। इस पर प्रभाचन्द्र की संस्कृत टीका है। [यह स्तोत्र कई स्तोत्रसंग्रहों आदि में प्रकाशित हुआ है । मुख्य प्रकाशन ये हैं-१ मल-सनातन जैन ग्रन्थमाला का प्रथम गुच्छक, १९०५, बनारस; २ मूल व हिन्दी अनुवाद-ब्र. शीतलप्रसाद, जैन मित्र प्रकाशन, सूरत; ३ मल, टीका व मराठी अनुवाद-पं जिनदासशास्त्री फडकुले, प्र. सखाराम नेमचन्द दोशी, सोलापूर, १९२०; ४ मल व हिन्दी स्पष्टीकरण-पं. जुगलकिशोर मुख्तार, वीरसेवामंदिर, दिल्ली । । जीवसिद्धि---इस ग्रन्थ का उल्लेख जिनसेन आचार्य ने हरिवंशपुराण में (१-२९) किया है, यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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