________________
३०२
विश्वतत्त्वप्रकाशः
[९०
सहजं क्षुत्तृषामनोभूवादिकम् । शारीरं वातपित्तपीनसानां वैषम्यसंभूतम् । मानसं धिक्कारावशेच्छाविधातादिजनितम् । आगन्तुकं शीतवातातपाशनिपातादिजनितम् । एतद्दुःखविशिष्टाश्चित्तक्षणाः संसारिणो दुःखमित्युच्यते । तद्दुःखजननकर्मबन्धहेतुभूते अविद्यावृष्णे समुदयशब्दनोच्येते। तत्र वस्तुयाथात्म्याप्रतिप्रत्तिरविद्या। इष्टानिष्टेन्द्रियविषयप्राप्तिपरिहारवाञ्छा तृष्णा। निरोधो नामाविद्यातृष्णाविनाशेन निरास्त्रवचित्तसंतानोत्पत्तिलक्षणः संतानोच्छित्तिलक्षणो वा मोक्षः। तथा मोक्ष. हेतुभता मार्गणा। सा च सम्यक्त्वसंज्ञासंशिवाक्कायकर्मान्तव्यायामाजीवस्थितिसमाधिलक्षणाष्टाङ्गा। तत्र सम्यक्त्वं नाम पदार्थानां याथात्म्यदर्शनम्। संज्ञा वाचकः शब्दः। संशी वाच्योऽर्थः। वाक्कायकर्मणी वाक्कायव्यापारौ। अन्तर्व्यायामो वायुधारणा। आजीवस्थितिरायुरवसानपर्यन्तं प्राणधारणा । समाधिर्नाम सर्व दुःखं सर्व क्षणिकं सर्व निरात्मकं सर्व शून्यमिति चतुरार्यसत्यभावना। तस्याः प्रकर्षादविद्यातृष्णाविनाशे निरोवचित्तक्षणाः सकलपदार्थावभासकाः समुत्पद्यन्ते मार्ग ये चार ( आर्यसत्य ) पदार्थ ही मोक्ष के लिए जानने योग्य हैं। दुःख के चार प्रकार हैं-भूख, प्यास, कामविकार आदि सहज दुःख हैं; चात, पित्त, कफ की विषमता से उत्पन्न दुःख शारीर है; ठंडी हवा, धूप, बिजली गिरना अदि से उत्पन्न दुःख आगन्तुक है तथा अपमान, अवज्ञा, इच्छा पूर्ण न होना आदि से उत्पन्न दुःख मानस है । इन दुःखोंसे युक्त चित्त-क्षणों को दुःख कहा है । इन दुःखों के उत्पादक तथा कर्मबन्ध के कारण दो हैं-अविद्या तथा तृष्णा । इन्हें ही समुदय कहा है। वस्तु का यथार्थ ज्ञान होना अविद्या है । तथा इन्द्रियों के इष्ट विषयों की प्राप्ति और अनिष्ट विषयों के परिहार की इच्छा को तृष्णा कहा है। अविद्या और तृष्णा के नाश से निरास्रव चित्त उत्पन्न होना अथवा चित्त के सन्तान का उच्छेद होना ही निरोध है । इसी को मोक्ष कहते हैं । मोक्ष के मार्ग के आठ अंग हैं । पदार्थों का यथार्थ ज्ञान होना यह पहला सम्यक्त्व अंग है । पदार्थों के बोधक शब्दों को संज्ञा कहते हैं तथा उन शब्दों से बोधित अर्थों को संज्ञी कहते हैं ये दूसरे तथा तीसरे अंग हैं । वाणी तथा शरीर के कार्य-वाक्कर्म तथा कार्यकर्म ये चौथे और पांचवे अंग हैं। अन्तायाम-श्वास को रोकना-यह छठवां अंग है। आयु के अन्त तक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org