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________________ -८५] सांख्यदर्शनविचारः २८१ मिति तापत्रयम् । तत्र क्षुत्तृषामनोभूभयाद्यन्तरङ्गपीडा आध्यात्मिकम् । वातपित्तपीनसानां वैषम्याद् रसरुधिरमांसमेदोस्थिमजाशुकमूत्रपुरीषादिवैषम्याच्च समुद्भूतमाधिभौतिकम्। देवताधिभूतपीडा आधिदैविकम्। इत्येतत्त्रयाभिघातात् तदपघातके हेतौ जिज्ञासा भवति । ननु क्षुधादि. निराकरणहेतूनामन्नाद्यौषधादिमन्त्रादितदपघातकहेतूनां दृष्टत्वात् सा निरर्थेति चेन्न । एकान्तात्यन्ततस्तदपघातकत्वाभावात्। ननु आनुश्रविको वेदोक्तो योगादिस्तदनुष्ठाने कृष्णकर्मक्षयेण शुरुकर्मप्राप्त्या स्वर्गप्राप्तिस्ततश्च दुःखत्रयाभिघातो भविष्यतीति चेन्न। अन्नौषधिमन्त्रादेरिव आनुश्रविकादपि एकान्तात्यन्ततोऽभावात्। आनुश्रविकस्य हिंसादियुक्तत्वेनाविशुद्धत्वात् तत्फलस्य क्षयातिशययुक्तत्वाच्च । तर्हि किं कर्तव्यमिति चेत् तद्विपरीतो मोक्षः श्रेयान् । स कुतः व्यक्ताव्यक्तज्ञविज्ञानात् । ते कीदृक्षा इत्युक्ते वक्ति हेतुमदनित्यमव्यापि सक्रियमनेकमाश्रितं लिङ्गम्। सावयवं परतन्त्रं व्यक्तं विपरीतमव्यक्तम् ॥ (सांख्यकारिका १०) होती । लौकिक कारणों के समान वैदिक मार्ग भी अशुद्ध है तथा श्रेष्ठ एवं सर्वदा की दुःखनिवृत्ति नही कराता । अत: व्यक्त, अव्यक्त और ज्ञ (चेतन पुरुष ) इन के ज्ञान का मार्ग श्रेष्ठ है।' इन में भूख, त्यास, कामवासना, भय, आदि आध्यात्मिक दुःख हैं; वात, पित्त, कफ की विषमता से रक्त-मांसादि में विकार होना आधिभौतिक दुःख है; देवताओं से होनेवाले कष्ट आधिदैविक दुःख हैं-ये तीन प्रकार के दु.ख हैं। अन्न, औषध, मन्त्र आदि लौकिक कारणों से ये दुःख पूर्णत: और सर्वदा के लिए दूर नही होते । वेद में कहे हुए योग आदि के करने से कृष्ण कर्म नष्ट होकर शुक्ल कर्म प्राप्त होते हैं तथा उन से स्वर्ग प्राप्त होता है किन्तु स्वग भी सर्वदा के लिए नहीं होता तथा सर्वश्रेष्ठ सुख वहां नही मिलता । दूसरे, वैदिक मार्ग हिंसा आदि दोषों से अशुद्ध है। अतः दुःखों से पूर्णत: रहित मुक्ति की प्राप्ति इष्ट है और वह व्यक्त, अव्यक्त तथा पुरुष के ज्ञान से होती है । उन का स्वरूप इस प्रकार है-' व्यक्त तत्त्व कारणों arwww १ अन्नादित्रयेण दुःखत्रयस्यापघातकत्वाभावात् । २ प्रकृता महान् लीनः महति अहंकारः अहंकारे षोडशगणा लीनाः इति लिंगलक्षणम् । ३ प्रकृतौ आश्रितम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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