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________________ २७९ -८४] सांख्यदर्शनविचारः नापि तृतीयः पक्षः। तुरीवेमादिशक्तिः पटरूपेण नाभिव्यज्यते तुरीवेमादिधर्मत्वात् स्पर्शादिरहितत्वात् तुरीवेमत्वजातिवदिति प्रमाणैर्वाधितत्वात् । शेषाशेषकारणशक्तेरपि एवमेव प्रयोगः कार्यः। तस्मात् पटादिकार्य कारणशक्तिरूपेण नासीत् कारणशक्तिर्वा पटादिकार्यस्वरूपेण नाभिव्यज्यत इत्यङ्गीकर्तव्यम् ।। अपि च। उत्पत्स्यमानोत्तरपर्यायाणां प्राक्तनपर्यायेषु सद्भावाङ्गीकारे रसरुधिरमांसमूत्रपुरीषादिपर्यायाणामप्यन्नपानखाद्यादिपर्यायेषु सद्भावात् तवाभिप्रायेण तेषामप्यभोज्यत्वमेव स्यात् । ननु अन्नपानखाद्यादिपर्यायेषु रसरुधिरमांसादिमूत्रपुरीषादिपर्यायाणां शक्तिरूपेण सद्भावोऽङ्गीक्रियते न व्यक्तिरूपेण ततो भोज्यत्वमिति चेन्न । रसरुधिरमांसादिसंकल्पमात्रेणाप्यभोज्यत्वं वदतां रसरुधिरमांसादीनां तत्र स्वरूपेण सद्भावप्रमितौ भोज्यत्वानुपपत्तेः। वीतमन्नपानादिद्रव्यं तवाभिप्रायेणाभोज्यमेव स्यात् रसरुधिरमासाद्यात्मकत्वात् तदात्मकद्रव्यवदिति बाधितत्वाच्च । तस्मादुत्पत्स्यमानोत्तरपर्यायाणां शक्तिरूपेणापि प्राक्तनपर्यायेषु असदभावोऽङ्गीकर्तव्यः। आविर्भावस्याप्यभिव्यक्त्यभिधानस्य प्रागविद्यमानस्याविद्यमानस्येत्यादिना प्रागेव विचारितत्वान्नेह प्रतन्यते तरह तन्तु की शक्ति तन्तु का गुण है, वह भी द्रव्य नही है तथा स्पर्श आदि से रहित है अतः वस्त्ररूप में व्यक्त नही हो सकती । करघा आदि की शक्ति भी उन उन पदार्थों का गुण है अतः वस्त्ररूप में व्यक्त नही हो सकती । अतः कार्य पहले शक्तिरूप होता है तथा बाद में व्यक्तिरूप धारण करता है यह मत गलत सिद्ध होता है। ___व्यवहार की दृष्टि से भी कारण में कार्य का विद्यमान होना सम्भव नही है । अन्न-पेय-खाद्य पदार्थों से रक्त-मांस-मूत्र आदि कार्य होते हैं। यदि रक्त-मांसादि कार्य अन्न पेयादि कारणों में विद्यामान हों तो सभी खाद्य पदार्थ अभक्ष्य होंगे। अन्न में रक्तमांसादि शक्तिरूप में होते हैं अतः दोष नही यह कहना भी ठीक नही । अन्न में रक्त - मांसादि की कल्पना भी दोषजनक होती है - शक्तिरूप में विद्यमान होना तो दोषपूर्ण होगा ही। अतः बाद में होनेवाले कार्य पूर्ववर्ती कारणों में विद्यमान, नही होते यह मानना आवश्यक है । अतः सांख्य मत का सत्कार्यवाद १ कार्याणाम् । २ कारणेषु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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