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________________ २६६ विश्वतत्त्वप्रकाशः [८१ अहंकारस्याहंप्रत्ययवेद्यार्थस्याहंप्रत्ययस्य वा स्वसंवेद्यत्वेन चेतनत्वात् तदुपादानत्वेन पुद्गलविकाराणां षोडशगणानामुत्पत्तरसंभवात् । ननु षोडशगणानां पौगलिकत्वं कथमिति चेत् बुद्धीन्द्रियकर्मेन्द्रियमनसा शरीरावयवत्वसमर्थनेन प्रागेव पौदगलिकत्वसमर्थनात्। गन्धरसरूपस्पर्शशब्दानां पृथ्व्यादिपुद्गलधर्मत्वेनापि प्रागेव समर्थितत्वाच्च । यदप्यन्यदवोचत् पञ्चतन्मात्रेभ्यः पञ्चभूतानि समुत्पद्यन्त इति तदप्यसारम् । आकाशस्य नित्यत्वेन शब्दादुत्पत्यसंभवात् । तथा हि। नित्यमाकाशं सर्वगतत्वात् आत्मवदिति । ननु आकाशस्य कार्यत्वेन सर्वगतत्वमसिद्धमिति चेन्न। आकाशं सर्वगतं सकलमूर्तिमद्व्यसंयोगित्वात् आत्मवदिति तसिद्धेः । तथा आकाशं नित्यम् अमूर्तद्रव्यत्वात् आत्मवदिति च । ननु आकाशस्य अमर्तत्वमसिद्धमिति चेन्न । आकाशममूर्त स्पर्शादिरहितत्वात् आत्मवदिति तसिद्धः। ननु आकाशस्य स्पर्शादिरहितत्वमसिद्धमिति चेन्न । आकाशं स्पर्शादिरहितं महत्त्वेऽपिवाद्येन्द्रियाग्राह्यत्वात् आत्मवदिति तत्सिद्धः। तथा पृथिव्यादीनां मध्ये भूभुवनभूधरद्वीपाकृपारादीनां नित्यत्वेनोत्पत्तेरभावान्न कथमपि तन्मात्रेभ्यः समु. त्पत्तिः परिकल्पयितुं शक्यते। कुतस्तेषां नित्यत्वमिति चेत् वीतं भूभुवनादिकं नित्यम् अस्मदादिप्रत्यक्षावेद्यमहापरिमाणाधारत्वात् आत्मवदिति प्रमाणादिति ब्रूमः। इतरेषां कार्यत्वेनाभ्युपगतानामपि द्वयणुकत्र्यणुकादीनां को अवकाश देता है, अमूर्त है - स्पर्श आदि से रहित है - विशाल होने पर भी बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात नही होता। अतः अमूर्त आत्मा के समान आकाश भी नित्य है । पृथ्वी में भुवन, पर्वत, द्वीप, समुद्र आदि भी नित्य हैं इस लिये गन्ध आदिसे उनकी उत्पत्ति मानना अनुचित है। भवन आदि को नित्य मानने का कारण यह है कि उन का विशाल परिमाण हमारे प्रत्यक्ष ज्ञान से ज्ञात नही होता। अतः नित्य पृथ्वी की उत्पत्ति का कथन अप्रमाण है। जल, तेज तथा वायु ये यद्यपि नित्य नही हैं तथापि उनकी उत्पत्ति परमाणु, द्वयणुक आदि से होती है - रस, रूप आदि से नही होती। ये कार्य द्रव्य उन अवयवों से उत्पन्न होते हैं जो स्वयं रूप आदि गुणों से युक्त होते हैं - जैसे रूपादियुक्त तन्तुओं से वस्त्र होता है। परमाणुओं की उत्पत्ति तन्मात्रों से होती है यह कहना भी सम्भव नही - परमाणु का परिमाण सब से अल्प होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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